बांस का फूल खिलना अकाल, विनाश और अपशकुन का प्रतीक क्यों माना जाता है | बांस का फूल एक जटिल वैज्ञानिक पहेली क्यों है | बांस का फूल जीवन में एक बार क्यों खिलता है?
जानकारी
आमतौर पर फसलों में खिले फूल आने वाली खुशहाली , सुख और समृद्धि की ओर संकेत करते हैं । कारण यह है क फूलों से फल और बीज ( दाने ) बनते हैं , जिन्हें बेचकर किसान अपनी आजीविका चलाते हैं परन्तु आश्चर्य , एक अत्यंत उपयोगी वृक्ष में खिलने वाले फूलों को आने वाले अकाल , दुख और गरीबी की छाया माना जाता है । हम बात कर रहे हैं घासों के शहंशाह बांस की , जिसके लगभग 1500 उपयोग बताए जाते हैं ।
फूलों को अपशकुन मानना
बांस में फूलों का खिलना देश के उत्तर - पूर्व इलाकों में एक बड़ा अपशकुन माना जाता है । खबर है कि उत्तर पूर्व में स्थित मिजोरम में बांस के फूल खिलने लगे हैं । इससे सरकारी अमले से लेकर आम आदमी और किसान तक में बेचैनी है तथा इससे निजात पाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जा रहे हैं । बांस के फूलों को अपशकुन मानने की परम्परा बहुत पुरानीसन 1959 में मिजोरम , त्रिपुरा और असम की बरक घाटी में बांस में सामूहिक पुष्पन देखा गया था और इसके बाद इन क्षेत्रों में भयंकर अकाल पड़ा तभी वैज्ञानिकों ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि सन् 2004 से 2007 के बीच मिजोरम , त्रिपुरा मणिपुर और असम मेघालय के कुछ क्षेत्रों में बांस के सामूहिक पुष्यन दिखाई देगा , जिसका केन्द्र मिजोरम में होगा । आज मिजोरम में बांस में खिलने वाले फूल यह भविष्यवाणी सच साबित कर रहे हैं ।
सन् 1959 से पूर्व सन् 1909-13 के बीच भी बांस में सामूहिक पुष्पन और उसके बाद अकाल अनुभव किया गया था । अनुमान है कि वर्तमान पुष्पन उत्तर पूर्व के लगभग 18 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले बांस के झुरमुटों में फैलेगा । दरअसल बांस के फूलों का खिलना एक जटिल वैज्ञानिक पहेली है , जिसका एकदम सटीक जवाब आज भी हमारे पास नहीं है ।
बांस का तेजी से बढ़ना
बांस से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि बांस के इक्का - दुक्का वृक्ष अपनी बढ़वार के दौरान अपने भूमिगत कंद ( राइजाम ) चारों ओर फैलाता रहता है और इन कंदों से नए वृक्ष पनपते रहते हैं । इस तरह जल्दी ही बांस के वृक्षों का एक अच्छा खासा झुरमुट तैयार हो जाता है । यहां ध्यान रखने की एक खास बात यह है कि बांस दुनिया का सबसे तेज बढ़ने वाला वृक्ष है ।
किस्म और वातावरण के अनुसार इसकी प्रतिदिन बढ़वार का विश्व रिकार्ड एक जापानी किस्म के बांस ने बनाया है , जिसने मात्र 24 घंटे में लगभग सवा मीटर की बढ़वार दिखाई । अब फूलों की बात करें तो इस मामले में बांस बहुत कंजूस है । इसकी कुछ जातियों में 15 वर्ष बाद फूल आते हैं तो कुछ में इससे दोगुणा समय भी लगता है ।
बांस की कुछ जातियां ऐसी भी हैं जिनमें 120 वर्ष बाद फूल खिलते हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जब बांस के झुरमुट में फूल खिलना शुरू होता है तो अवस्था या उम्र के किसी भी भेदभाव के बिना पूरे झुरमुट में फूल खिलते हैं । इसे ही सामूहिक पुष्पन कहा जाता है । बांस की इस आदत का अभी तक कोई ठोस वैज्ञानिक कारण नहीं खोजा जा सका है ।
चूहों का आक्रमण
पुष्पन से जुड़ी एक पहेली यह भी है कि बांस में जीवन में एक बार ही फूल खिलते हैं यानी पुष्पन की अवस्था के तुरंत बाद झुरमुट के सभी वृक्ष एक साथ काल - कवलित भी हो जाते हैं । सामुहिक पुष्पन और सामूहिक विनाश के तुरंत बाद पूरे क्षेत्र में बांस के बीज बिखर जाते हैं ।
प्रचुर मात्रा में पसंदीदा आहार की उपलब्धता के कारण चूहों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है । पहले तो ये चूहे बांस के बीज खाते हैं और फिर इनके खत्म होने पर सीधे किसानों के खेत - खलिहानों पर हल्ला बोल देते हैं । इन्हें रोक पाना लगभग नामुमकिन होता है । देखते - देखते चूहे सारी फसल और खलिहान चट कर जाते हैं । इसलिए उस क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से अनाज की कमी हो जाती है ।
आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होने के कारण बांस के झुरमुटों के सामूहिक विनाश के क्षेत्र की आर्थिकी पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है । वन की परिस्थितिकी भी इस अचानक लगे आघात से डगमगा जाती है । देश के उत्तर - पूर्व में रहने वाली जनजातियां बांस के तने और बीजों को नियमित रूप से खाती हैं , इसलिए उन्हें भी बांस के सामूहिक विनाश से करारा झटका लगता है । मिजोरम से बांस में फूल खिलने और चूहों की संख्या में वृद्धि होने की खबरें मिलने लगी हैं ।
बांस की उपज वाले क्षेत्र
मिजोरम में तीन तरह के बांस पाए जाते हैं और इनमें सामूहिक पुष्पन के दो अलग - अलग चक्र चल रहे हैं । मौजूदा सामूहिक पुष्पन को मिजो भाषा में ' मौ तम ' कहा जाता है , जबकि सन् 2012 में संभावित सामूहिक पुष्पन को ' थिंग तम ' नाम से जाना जाएगा। 'मौ तम ' के दौरान नीलोकैना बस्बूसॉयडीज लांजिरापेथस प्रजातियों में पुष्पन संभावित है ।
गौरतलब है कि हमारे देश में लगभग 40,000 हैक्टेयर क्षेत्र पर बांस के वन दिखाई देते हैं , जिनमें से लगभग 28 फीसदी क्षेत्र उत्तर - पूर्व में मौजूद हैं । साथ ही हमारे यहां बांस की कुल 136 जातियां पनपती हुई देखी गई हैं जिसमें से 58 केवल उत्तर - पूर्व में हैं । बांस उत्पादन के मामले में उत्तर - पूर्व के बाद मध्य प्रदेश , महाराष्ट्र , उड़ीसा , आंध्र प्रदेश और कर्नाटक का स्थान है ।
अकाल और विनाश से बचने का उपाय
बांस के सामूहिक पुष्पन , सामूहिक विनाश और फिर अकाल से निपटने का सबसे टिकाऊ रास्ता यह है कि प्रजनन द्वारा बांस के नए पौधे तैयार किए जाएं और इन्हें पुराने झुरमुट की जगह तुरंत रोप दिया जाए , इससे चूहों को अपना पेट भरने के लिए बांस के वनों से बाहर नहीं जाना पड़ेगा ।
इस दौरान वनों से बांस के बीज इकट्ठे कर लेने चाहिएं । इनकी बाजार में अच्छी मांग है । बेहतर तो यह होगा कि सभी वृक्षों को पुष्पन का अवसर ही न दिया जाए । एक बार पुष्पन से पुष्पन प्रारंभ होने पर अन्य वृक्षों की पूर्व कटाई करके बांस को इस्तेमाल में लाया जाए ।
उत्तर - पूर्व में बांस के सामूहिक पुष्पन की समस्या से निपटने के लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षण परिषद और जोरहट स्थित इसके घटक वर्ष वन अनुसंधान संस्थान ने आवश्यक रणनीति तैयार की है । इसे अपनाने और वहां की स्थानीय आबादी को इसके प्रति जागरूक बनाने की सख्त जरूरत है ।
तभी बांस के सामूहिक पुष्पन की चुनौती हमारे लिए सुनहरे अवसर में बदल सकती है ।
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