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दो सिर वाले सांपों का रहस्य क्या है | वैज्ञानिक रहस्य क्या है | दंत कथाओं में इनका क्या उल्लेख है ? भाग 1

दो सिर वाले सांपों का रहस्य क्या है ?



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दोस्तों आपने कथाओं में कई सिर वाले सांपो के बारे में तो जरूर पढ़ा होगा या दादाजी की कहानी में भी आपने सुना होगा। इसके अतिरिक्त हिंदू धर्म ग्रंथों मैं भी कई सिर वाले सांपों का उल्लेख मिल जाता है। जैसे शेषनाग के कई सिर थे। 



भगवान श्री कृष्ण जी ने भी कालिया नाग पर नृत्य किया था । जिनके कई सिर थे । अलग-अलग दंत कथाओं में भी कई सिर वाले सांपों का उल्लेख मिल जाता है। अनेक सिर वाले सांप देखना तो अत्यंत दुर्लभ है लेकिन कई बार दो सिर वाले सांप जरूर देखने को मिल जाते हैं।



एक सांप के दो सिर कैसे और होते हैं ? क्या है इसका रहस्य? आओ जाने ।

बरेली में जब दो सिर वाला सांप मिला तो लोग आश्चर्यचकित रह गए और उसकी दिनचर्याओं के बारे में तमाम तरह की अटकलें तथा जिज्ञासाएं जताने लगे । क्या दो सिर पाले सांपों में भोजन की लालसा दोनों मुंहों में एक साथ उठती है या अलग - अलग ? 




छेड़ने पर दोनों मुंह एक साथ झपट्टा मारते हैं या  एक शांत बैठा रहता है और दूसरा लड़ रहा होता है ? इस प्रकार की कितनी ही जिज्ञासाएं सांपों का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के मन में उठती हैं क्योंकि बरेली में मिले इस सांप का उस वैज्ञानिक दृष्टि से अवलोकन नहीं किया गया था । इसलिए मुझे इन प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर नहीं मिला । 




प्रकृति की ऐसी अद्भुत सृष्टि का निरीक्षण यद्यपि प्राचीन समय के सर्पाचार्यों ने भी किया था परन्तु उनके वृतांतों में इस संबंध में विशेष उल्लेख नहीं मिलता । उदाहरण के लिए अथर्ववेद एक युग्म सर्प को नष्ट करने की प्रार्थना मिलती है , जिसका नाम सात्रासाह था ।




सात्रासाहस्याहं मन्योरख जयामिव धन्वनो व मुंचामि रथां इव । ( अथर्ववेद , कांड 5 मुक्त 136 ) वर्तमान समय में प्रकृति वेत्ताओं ने युग्म वर्षों के बारे में अवश्य बहुत कुछ जानकारी दी है । दक्षिण अफ्रीका में दो सिर वाले एक पफ ऐडर की खोज ने कौतुक पैदा कर दिया था । डा . श्मिट शांबुर्ग ने इसका रोचक वृतांत दिया है ।



रेल के डिब्बे के समान जुड़े सिर :


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लोवेल्ड में एक चट्टान के नीचे दो सिर बाहर झांक रहे थे । सांपों का जोड़ा मिलने की आशा से जब उन्हें पकड़ा गया तो दोनों सिर एक ही शरीर में लगे हुए पाए गए । एक्स - रे चित्र बताता था कि दोनों सिरों का प्रकट रूप में जो दृढ़ संयोग दिखता था , वह वस्तुत : अंदर नहीं था । 




रीढ़ की हड्डी बहुत दूर तक अलग - अलग थी । लगभग 25 वें कशेरूका से दोनों रीढ़ें मिल कर एक रीढ़ बन जाती थीं । दोनों रीढ़ों के ऊपर मांसपेशियां और खाल ऐसे चढ़ी हुई थी कि देखने से यह एक ही गर्दन दिखती थी । इन्हें रेल के डिब्बों के समान मजबूती से जोड़ने वाली खाल की शक्ल भी विचित्र - सी थी । 



सामान्य पफ ऐडर से इस प्राणी का शरीर जरा - सा ही बड़ा था । सिर के ठीक नीचे इसकी चौड़ाई साधारण चौड़ाई से दोगुनी हो गई थी । दोनों सिर बराबर थे , पूर्ण थे और उनकी बनावट बिल्कुल सही थी । आंखों के दोनों जोड़े जरा से असमान थे । पेट का अनुपात सामान्य सांपों जैसा था । 




दोनों  सिरों के बीच में ढीली खाल थी जिसका रंग । पेट के समान था और इसके ऊपर छिलके भी । वैसे ही थे जैसे पेट पर । जब यह जीव चलता था तो एक सिर को दूसरे पर प्रभुता करते हुए नहीं देखा गया । साधारण सांप की तुलना में इसकी गति अनिश्चित - सी होती थी और चलते हुए यह रुकता भी बहुत अधिक था । 




साधारण पफ ऐडर अपने लक्ष्य पर लपक कर पहुंच जाता है परन्तु यह वैसा नहीं करता था । यह टटोलता हुआ और दिशाओं को बहुधा तथा स्वेच्छा से बदलता हुआ चलता था । सांपों में पसलियों की चाल पदाति - जातक ( कैटर पिलर ) की टांगों की गति के लगभग बराबर होती है और इसे देखना बड़ा दिलचस्प होता है । 


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Image Source-Google/Image By:-hindustantimes.com


पफ ऐडर में पसलियों की यह लीला इस सांप में लगभग पूर्णत : अनुपस्थित थी । दो सिर वाले इस पफ ऐडर के दोनों सिर इतना पास - पास तथा मजबूती से जुड़े हुए थे कि खिलाते समय ये आपस में लड़ ही नहीं सकते थे । दोमुहीं जाति के सांपों में एक मटिया सांप होता है , जिसे अंग्रेजी में रसेल्स अर्थस्नेक , रसेल्स सैंड बोआ और रसेल्स रेड अर्थ बोआ तथा लैटिन में एरिक्स कोनिकस कहते हैं । 




यह मंद और डरपोक सांप सूखे इलाकों में आम मिलता है । 4 जून 1983 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के होल - अलूर गांव में एक किसान ने दो मुंहवाला ' मथ्अया ' सांप पकड़ा था । यह सांप धारवाड़ संभाग के सहायक वन संरक्षक एम.बी. वाडिन को दे दिया गया । इसे केंचुए , सुंडियां , वगैरह खिलाई जाती थीं और यह दो महीने जिंदा रहा । 




कर्नाटक साइंस कालेज के जूओलॉजी विभाग में इसकी परीक्षा की गई थी । यह 20 सैं.मी. लम्बा था । मध्य शरीर का घेरा 4 सैं.मी. था । इसके दो सिर थे और दोनों का आकार एक जैसा था । एक्स - रे के फोटो में दिखाई देता था कि सिर के पीछे लगभग 16 वें कशेरूका तक दो मेरू - दंड हैं , 


जो फिर मिल कर एक बन गए हैं । सांप के अगले सिरे की रचना दोमुंहे पफ ऐडर जैसी ही थी ।


बारी - बारी से बदलता नेतृत्व :



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Image Source-Google/Image By:-vectorstock.com

इस सांप की क्रियाएं मंद थीं । यह धीरे - धीरे सरंकता था । जब यह किसी दिशा में जा रहा होता था , तब केवल एक सिर नेतृत्व करता था , दूसरा सिर उसी तरफ घिसटता चलता था । सांप को छेड़ कर दिशा बदलवाई जाती थी तो दूसरा सिर नेतृत्व करने लगता था और पहला सिर साथ घिसटने लगता था । 




दो भागों में चिरी हुई चीभ दोनों मुंहों से लपलपाती हुई दिखाई देती थी । दोनों दिमाग एक - दूसरे के साथ इस तरह सहज सहयोग और समन्वय करते हुए दिखाई देते थे , मानो एक ही दिमाग से उसकी सब गतिविधियां संचालित हो रही हों । दो सिर वाले सांपों के एक ही सिरे पर दो सिर होते हैं । 




पूंछ की ओर दूसरा सिर होने का मिथ्याभिमान तो सांप क्या कोई भी रीढ़दार प्राणी नहीं कर सकता । दो सिर वाले सांप सामान्य रूप से नहीं पाए जाते । इन्हें हम अपवाद कह सकते हैं । ऐसे जीव जन्म के बाद बहुत देर तक जिंदा नहीं रहते । वैज्ञानिक परिभाषा में इन्हें शीर्ष युग्मशाखी सर्प ( सिफैलो डिकोटोमस ओफीडियन ) कहते हैं । 




वास्तव में ये प्रकृति की प्रयोगशाला में भूलों के परिणाम हैं । ये विकृतियां या विषमताएं ठीक वैसी ही हैं जैसे मनुष्य के पैर या हाथ में कभी - कभी अतिरिक्त उंगलियां होती हैं । (क्रमशः भाग 2 में)

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दो सिर वाले सांपों का रहस्य क्या है | वैज्ञानिक रहस्य क्या है | दंत कथाओं में इनका क्या उल्लेख है ? भाग 1 Reviewed by Jeetender on September 21, 2021 Rating: 5

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