एक सांप के कितने सिर हो सकते हैं | कैसे एक सिर अपने ही दूसरे सिर का दुश्मन बन गया | दो सिर वाले सांप की जीवन शैली कैसी होती है?
दो मुंह वाले सांप का रहस्य
( भाग 1 से आगे )
1.केवल सिर या सिर के साथ का चिला शरीर भी कुछ दूरी तक दो भागों में । भक्त हो । इस प्रकार का उदाहरण बरेली कॉमन वुल्फ स्नेक और होले - अलूर का मटिया सांप है।
2. सिर और सिर के नीचे का भाग तो एक हो , पर केवल पूंछ या उसके ऊपर कुछ दूरी तक शरीर दो भागों में विभक्त हो । भिन्नता के इस प्रकार को पश्च युग्मशाखिता ( पोस्टीरियर डिकोटोमी ) कहते हैं । इस प्रकार के सांप अत्यंत दुर्लभ हैं ।
3. सिर और पूंछ के दोनों सिरे दो भागों में विभक्त हों और मध्य शरीर कुछ दूरी तक एक हो । इन्हें सर्प संसार के स्यामी युगल कहा जाता है।
4. सिर , गर्दन और पूंछ कुछ दूरी तक दो भागों में विभक्त हों।
पाठकों को स्वाभाविक जिज्ञासा हो सकती है कि एक सांप के अधिक से अधिक कितने सिर हो सकते हैं ? भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं में पाठकों ने उस कालिय के मर्दन की कहानी सुनी होगी जो अपने विशाल और डरावने पांच मुखों से तालाब को चारों ओर से धेरै पड़ा था ।
आमूर के तटवर्ती प्रदेश में उलची जनगण की वीरगाथाओं में एक दावन नाग की रोचक कहानी है । इसका नाम द्याब्दा था । तीन सिरों वाला यह द्याब्दा नाग लोगों के लिए बड़ी विपत्ति बन गया था । बाहर खेलते हुए कुत्तों और बच्चों को वह उठा ले जाता था । लोग उस पर तीर चलाते , पर तीर छिटक जाते।
उन्होंने भालों से वार किए , पर भाले टूट गए । अजीब मुसीबत आ गई थी । उस देश के नौजवान ने तब अपनी मातृभूमि से आशीर्वाद मांगा और द्याब्दा से जूझ गया । भयंकर युद्ध में उसने तीन हमलों में उसके तीनों सिरों के एक - एक करके काट गिराया । 14 वीं शताब्द के एक संस्कृत लेखक शाग्धर ने पांच , सात आठ , दस और इक्कीस सिर वाले सांपों का भी जिक्र किया है :
दशाष्टपंचत्रिगुणसप्तमूर्धान्वितौ क्रमात् । शाधर पद्धति , विषापहरण चिकित्सा ॥
6 अगस्त , 1958 को मुंबई से भेजा गय एक समाचार अखबारों में छपा था । इसमें बताया गया था कि श्रीरामपुर के समीपवर्ती एक गांव के प्राचीन मंदिर में एक भयानक सांप देखा गया है , जिसके दस फन हैं । लोग इस सांप को दूध पिलाते हैं और सैंकड़ों व्यक्ति इसके दर्शन के लिए एकत्र रहते हैं । ग्रीक वीर हरक्युलिस ने जो जलसर्प मारा था , उसके नौ सिर थे । भारतीय पुराणों के शेषनाग के सिर तो एक हजार थे ।
दो दिमाग , दो इच्छाएं एक साथ :
दो सिर वाले सांपों में दोनों सिर अपनी इच्छा से कार्य करते हैं । प्रत्येक सिर में एक मस्तिष्क होता है और प्रत्येक मस्तिष्क यद्यपि एक ही ने सुषुम्ना नाड़ी से संयुक्त हो सकता है , फिर भी वह इस तरह कार्य करता है जैसे उसका किसी दो सिम पृथक शरीर से संबंध हो ।
एक दिशा में जाने के लिए दोनों सिर एक - दूसरे से सहमत नहीं भी हो सकते और दोनों में रस्साकशी हो सकती है । अमरीका की राष्ट्रीय पशुवाटिका में सरीसृप विभाग में दो सिर वाला एक सांप जीवित रखा गया था । इसकी दोनों गर्दनें 5 सैं.मी. तक अलग थीं ।
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इसका सचित्र विवरण जर्नल ऑफ दि अमरीकन म्यूजियम ऑफ नैचुरल हिस्टरी में छपा था । दो सिर होने के कारण इसमें दो पथक अस्तित्व थे । यद्यपि इनका शरीर एक ही था । यदि किसी एक सिर को मेंढक दिया जाता तो दूसरा सिर अपने को भूखा समझता और दोनों में लड़ाई ठन जाती परन्तु सौभाग्यवश यह सांप निर्विष था ,
इसलिए कोई भी सिर दूसरे को किसी प्रकार का गंभीर नुक्सान नहीं पहुंचा सकता था । इस ईर्ष्या और लड़ाई को रोकने के लिए दोनों सिरों को एक साथ दो मेंढक या चूहे खाने को दिए जाते थे , पर इससे भी बात नहीं बनती थी क्योंकि जब एक अपना ग्रास दूसरे से पहले समाप्त कर लेता और उसकी खाने की इच्छा तब भी बनी रहती तो वह दूसरे सिर से उसका भोजन छीनने की कोशिश करता
यद्यपि भोजन को एक ही आमाशय में पहुंचना था । प्रत्येक सिर से एक - एक अन्न प्रणाली और एक - एक श्वास प्रणाली निकलती थी । अंदर जाकर ये क्रमश : एक ही आमाशय और फेफड़े में मिल जाती थीं ।
ई.सी. फिशर ( 1896 ) के पास दो सिर वाला एक स्प्रेडिंग ऐडर था जिसकी लम्बाई करीब 30 सें.मी. थी और आयु चार माह से अधिक थी । 1896 में ' मद्रास टाइम्स ' ने उस पर एक टिप्पणी दी थी
एक सांप शीशे के बॉक्स में रहता है और दूध , कच्चा मांस तथा खून , दोनों सिरों से एक ही समय में ग्रहण करता है । फिशर दोनों सिरों को एक ही साथ खिलाना अच्छा समझते हैं ज्योकि वे दोनों एक - दूसरे के प्रति ईर्ष्यालु प्रतीत होते हैं और कभी - कभी तो वे आपस में लड़ भी पड़ते हैं । प्रायः वे आपस में खेला भी करते हैं । प्रतीत होता है कि सांप फिशर को पहचानता है क्योंकि उनके आने पर वह बक्से के पास आ जाता है और प्रसन्नता में अपनी जीभें निकाल कर उनका स्वागत करता है ।
एक सिर दूसरे सिर को निगल गया :
पोर्ट एलिजाबेथ की सर्पशाला में एक सांप प्रदर्शित किया गया था । इसकी दोनों गर्दनें साढ़े सात सैंटीमीटर लम्बी थीं । इसलिए दोनों सिर पर्याप्त स्वतंत्रता से हिल डुल सकते थे । एक दिन एक मेंढक को पिंजरे में छोड़ दिया गया । अगले दिन सुबह सांप का मालिक यह देख कर चकित रह गया कि
एक सिर दूसरे को वहां तक निगल गया है , जहां से शरीर दो भागों में बंटता था । जल्दी से निगले हुए सिर को बाहर निकाला गया । यह अब तक मरा न था । कोमलता से गर्दन का बल सीधा किया गया । इसके बाद दोनों सिर आपस में पहले जैसे मित्र नहीं रहे । जो मस्तिष्क एक बार कुछ समय के लिए दूसरे सिर का भोजन बन चुका था , वह शायद दूसरे को उसकी करतूत के लिए कभी क्षमा करने को तैयार नहीं था ।
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एक दिन उसका क्रोध चरम सीमा तक पहुंच गया , जिसका परिणाम दोनों की मृत्यु के रूप में हुआ । इस प्रकरण में विष्णु शर्मा की पुस्तक पंचतंत्र के भारंड पक्षी का उदाहरण और भी अधिक विस्मयजनक जान पड़ता है ।
भारंड के दोनों मुखों में भोजन के लिए प्रायः झगड़ा रहता था और जब कभी एक मुख की जीत हो जाती तो दूसरा अपने इस तिरस्कार का बदला लेने का उपाय सोचा करता । एक दूसरे के प्रति इस द्वेष बुद्धि से ही एक मुख ने जान - बूझ कर एक विषैला फल खा लिया । परिणामस्वरूप दोनों की मृत्यु हो गई ।
एकोदरः पृथग्नीवा अन्योन्यफलभक्षिणः । असंहता विनश्याति भारंडा इव पक्षिणः ॥ ( पंचतंत्र )
यह भी देखा गया है कि सांप के दोनों सिर अपना अंत होने तक सांस लेते रहते हैं । रेडी ( 1648 ) एक उदाहरण दिया है , जिसमें दायां सिर सुबह प्राय : तीन बजे मर गया था और बायां सिर सात घंटे बाद मरा था । है न विचित्र ।
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