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महात्मा गांधी | विश्व नागरिक बन गए गांधी जी | जिन्हें विश्व ने माना भारतीयों ने क्यों भुला दिया (2 अक्टूबर पर विशेष)

 मोहनदास करमचंद गांधी



2 अक्टूबर 1869, अल्बर्ट आइंस्टीन, मार्टिन किंग लूथर, नेल्सन मंडेला, बापूजी, मोहनदास करमचंद गांधी, राष्ट्रपिता, मदर टेरेसा, असहयोग आंदोलन, स्वतंत्रता,
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी


अब हम उन्हें ' बापू न कह कर ' राष्ट्रपिता ' कहते हैं । करंसी नोटों पर अंकित उनके चित्रों में प्रत्येक भारतीय प्रतिदिन उनके दर्शन करता है परन्तु उनके सिद्धांतों को अपने हृदय पटल पर अंकित करने का शायद ही किसी ने प्रयत्न किया हो । वह व्यक्ति जिसने गरीबों और दुर्बल भारतीयों की दशा सुधारने की कोशिश की थी , उन्हीं भारतीयों ने उसे भुला दिया ।

 




गांधीवाद आज एक ' दर्शन मात्र ' बन कर रह गया है जिसे विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उद्धृत किया जा सकता है , उसे विकृत किया जा सकता है और उसकी मनचाही  व्याख्या करके उसे अपने हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है किसे चिंता है यह जानने की कि गांधी जी जैसे महान इंसान की सच्चाई क्या थी ? आज उसी व्यक्ति को उसके अपने ही देश में सबसे अधिक गलत समझा जा रहा है और सबसे कम सम्मान दिया जा रहा है।





सच्चाई मरती नहीं सच्चाई को हमेशा सूली पर लटकाया जाता रहा है लेकिन सच्चाई का भी नियम रहा है कि हर बार यह पुनर्जीवित हो उठती है । यही कारण है कि आज गांधी जी समस्त विश्व के नागरिक बन गए हैं और ऐसा लगता है जैसे उनकी आत्मा अनेक देशों और विश्व की अनेक जानी - मानी हस्तियों को अपना मार्गदर्शन दे रही है ।

 




आइनस्टीन की गांधी भक्ति

 


' टाइम ' पत्रिका ने अल्बर्ट आइनस्टीन को ' शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति ' चुना है जबकि गांधी जी उपविजेता रहे । विश्व भर के राष्ट्रवादियों , वैज्ञानिकों और नेताओं की भीड़ में ये दो नाम सबसे अलग ही दिखाई देते हैं जिन्होंने मानव मात्र के इतिहास और विकास को इस कदर प्रभावित किया है जैसा कि कोई अन्य नहीं कर सका ।

 




आइनस्टीन तो गांधी जी से इतना अधिक प्रभावित थे कि वह यह लिखे बिना न रह सके कि " आने वाली पीढ़ियों के लिए यह विश्वास करना कठिन होगा कि इस धरती पर कभी इस तरह का व्यक्ति भी आया था । " आइनस्टीन ने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हीरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से हुई विनाश लीला देखने के बाद शांति और अहिंसा का प्रचार शुरू कर दिया था ।

 




इसी प्रकार गांधी जी के समकालीन महान फ्रांसीसी दार्शनिक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता रोम्यां रोलां ने लिखा था , " गांधी जी मानव जाति के लिए नई आशा का सवेरा थे ... वह क्रूरता की शक्ति का मुकाबला करने वाली आत्मशक्ति का प्रतीक थे । "



  

बेहतर समझा यूरोप ने



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युद्ध से नष्ट यूरोप ने अहिंसा तथा असहयोग के सिद्धांतों को हम भारतीयों के मुकाबले कहीं बेहतर ढंग से समझता है ।



 वह दिव्यात्मा थे



गांधी जी के सम्बन्ध में दक्षिण अफ्रीका के मुक्ति प्रदाता नैल्सन मंडेला ( जिन्हें बाद में 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया ) लिखते हैं , " वह कोई साधारण नेता नहीं थे ... एक दिव्यात्मा थे । " नेल्सन मंडेला ने गांधी जी के सत्याग्रह के दर्शन को अपनाया लेकिन वह कहते हैं कि बेरहम शक्तियों के चलते उन्होंने एक चरण पर अपने आंदोलन को हिंसक हो जाने दिया क्योंकि उन लोगों में गांधी जैसा आत्मबल नहीं था ।



 

घाना ने भी ली प्रेरणा 



दक्षिण अफ्रीका के साम्राज्यवादी चंगुल से मुक्त होने से बहुत पहले एक अन्य अफ्रीकी देश ने भी संघर्ष के अहिंसक उपायों को अंगीकार किया था । अपनी स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले भारतीयों के साक्षी हैं वे सैनिक जो द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर इंगलैंड ( मित्र सेनाओं ) की ओर से चीन में युद्ध लड़ने के बाद घर जाते हुए बम्बई में रुके थे

 




और स्वदेश वापसी पर ' विदेशी शासन ' से मुक्ति प्राप्त करने हेतु उन्होंने गांधी जी के अहिंसक उपायों को अपनाया । यह अफ्रीकी देश था अंग्रेजों का सबसे अमीर एवं सर्वाधिक शिक्षित उपनिवेश ' गोल्ड कोस्ट '  विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त करने वाला यह सबसे पहला अफ्रीकी देश था जिसे आज हम ' घाना ' के नाम से जानते हैं ।



 


देश के स्वतंत्रता के समारोहों के अवसर पर विश्व भर से अश्वेत नेताओं को आमंत्रित किया गया था । इनमें नस्ली समानता के लिए सामूहिक संघर्ष का नेतृत्व करने वाले मार्टिन लूथर किंग भी शामिल थे ( उन्हें 1964 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था )  घाना की आजादी के जश्नों में भाग लेने के लिए वहां आने पर ही मार्टिन लूथर किंग को गांधी जी तथा स्वतंत्रता के लिए उनके अहिंसक संघर्ष की जानकारी मिली थी।

 




इससे वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने ' अहिंसा के समस्त सिद्धांतों को अपना लिया तथा अमेरिका में एक अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व करके अंतत : अफ्रीकी अमेरिकनों को उनके अपने ही देश में ' दूसरे दर्जे की नागरिकता ' से मुक्ति दिलवाने में सफल रहे । ज्ञातव्य है कि गांधी जी की भांति ही मार्टिन लूथर किंग की भी उन्हीं के लोगों द्वारा हत्या कर दी गई थी ।




जब वह उन्हें हिंसा के त्याग के लिए प्रेरित करने हेतु आंदोलन चला रहे थे । मार्टिन लूथर किंग अक्सर गांधी जी का एक कथन उद्धृत किया करते थे , " बौद्धिकता के विकास की एक सीमा है परन्तु हृदय के विकास की कोई सीमा नहीं । "




 

स्वतंत्रता का अर्थ समझाया


 

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अन्यों की तुलना में यूरोप क्यों गांधी जी का अधिकतम प्रशंसक है ? इसका एक कारण यह है कि उन्होंने घृणा , रक्तपात और नस्ली टकरावों को बढ़ावा देने वाले हिटलर , मुसोलिनी , स्टालिन और फ्रैंको के दौर को झेला है । ये वे तानाशाह थे जिन्होंने स्वयं को महिमामंडित करने के लिए लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के सिद्धांतों को तहस - नहस किया ।

 




गांधी जी ने यह सिखाया कि स्वतंत्रता का अर्थ अपनी खातिर दूसरों की स्वतंत्रता छीनना नहीं है बल्कि स्वतंत्रता का अर्थ है दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर कर देना ... स्वतंत्रता का अर्थ है दमनकारी के खिलाफ मजबूती के साथ खड़ा होना । दोनों विश्व युद्धों में इंगलैंड ने ऐसा ही किया था । इसी कारण इंगलैंड वाले आज भी खुल कर गांधी जी के प्रशंसक चले आ रहे हैं । 





सर्वाधिक गांधी प्रतिमाएं लंदन में लंदन का ' यूनिवर्सिटी कालेज ' आज भी मोहनदास के . गांधी को 19 वीं शताब्दी के अपने विशिष्ट छात्रों में से एक घोषित करने में गर्व अनुभव करता है । भारतीय कानून एवं न्याय प्रक्रिया सम्बन्धी कोर्स का 1889 का हाजिरी कार्ड आज भी इस कालेज में सगर्व प्रदर्शित है । 





यहां से गुजरने वाली सब टूरिस्ट बसें खासतौर पर इस कालेज के आगे रोकी जाती हैं और पर्यटकों को बताया जाता है कि , " यही वह कालेज है जहां महात्मा गांधी ने कानून की पढ़ाई की थी । " इंगलैंड वासियों की गांधी - निष्ठा का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि गांधी जी को सबसे अधिक प्रतिमाएं यदि लंदन में हैं ।... और यह सब उस महान इन्सान के प्रति सम्मान स्वरूप है , जिसने उन्हें ( अंग्रेजों को ) भारत छोड़ जाने को विवश कर दिया था ।




 बर्लिन संग्रहालय में


 

बर्लिन शहर के बीचों बीच , जहाँ किसी जमाने में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को बांटने वाली दीवार खड़ी थी और ठीक उस जगह जहां पश्चिमी जर्मनी में प्रवेश हेतु कड़े पहरे वाला ' चैक प्वायंट चार्ली ' नामक प्रवेश द्वार था , वहां आज एक संग्रहालय स्थापित है , जिसमें पूर्वी जर्मनी द्वारा कम्युनिस्ट शासन को उखाड़ फैंकने के लिए किए गए संघर्ष की झांकी दर्शाई गई है । 





उस संग्रहालय के प्रवेश द्वार में घुसते ही एक विशाल हाल आता है जिसमें महात्मा गांधी के हाथ के लिखे हुए नोट्स , उनका कलम , उनके खड़ाऊं तथा चरखा प्रदर्शित हैं । यहां टेलीविजन के सभी मॉनीटर्स पर सारा समय गांधी जी के जीवन एवं कार्यों पर आधारित वृत्तचित्र का प्रदर्शन जारी रहता है और यह सब उस महान इंसान को श्रद्धांजलि स्वरूप है ।





जिसके विचारों तथा सिद्धांतों ने पूर्वी जर्मनी वालों को अन्य सब उपायों के असफल हो जाने के बाद प्रेरित किया । उनके द्वारा अपनाए गए शांतिपूर्ण असहयोग ने ही अंततः दोनों विभाजित जर्मनियों को एक करवाने में सफलता दिलाई ।




 

पोलैंड में भी


 

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ठीक यही कहानी पोलैंड में भी दोहराई गई थी जहां समस्त आंदोलनों तथा हिंसक उपायों के असफल रहने के बाद गांधीवादी आदशों से प्रेरित पोलैंड वासियों ने अहिसः एवं सत्याग्रह की शक्ति के सहारे साम्यवाद के जुए को अपने गले से उतार फैंका ।




 ' थिक डिफरेंट '


 

महात्मा जो सबसे जुदा थे और सबसे जुदा , न्यारा और अच्छा सोचते थे । तभी तो ' आई मैक ' कम्प्यूटर के निर्माताओं एपल कम्पनी ने चरखा कातते महात्मा गांधी के चित्र को अपने विज्ञापन का आधार बनाया और उनके चित्र पर लिखा ' थिंक डिफरेंट ! 

 




तिब्बतियों के सर्वोच्च गुरु दलाई लामा आज ..और जहां तक भारत का संबंध है भी गांधी जी के आदर्शों से प्रेरणा ले रहे हैं । गांधी जी एक ऐसे महामानव हैं जिन्होंने अफ्रीका , अमेरिका और यूरोप को प्रभावित किया है लेकिन प्रश्न तो यह है कि उनके बताए रास्ते पर चलने में हम भारतीय कब गर्व महसूस करेंगे ?


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महात्मा गांधी | विश्व नागरिक बन गए गांधी जी | जिन्हें विश्व ने माना भारतीयों ने क्यों भुला दिया (2 अक्टूबर पर विशेष) Reviewed by Jeetender on September 23, 2021 Rating: 5

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