समुद्र की गहराई कैसे मापी जाती है ?
जानकारी बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में समुद्र में किसी एक स्थान पर गहराई मापने का एकमात्र ज्ञात तरीका था केबल की सहायता से वहां की गहराई मापना । जलयान रुकता था तथा एक रस्सी या केबल ( तार ) के साथ भार बांध कर उसे समुद्र तल तक लटकाया जाता था ।
यह एक धीमा , उबाऊ काम था तथा बहुत सटीक नहीं था । आज मनुष्य ने अनगिनत ऐसे उपकरण विकसित कर लिए हैं जो उसे समुद्र में गहराई में जाने तथा इसके तल के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने में सहायता करते हैं ।
क्या आप जानते हैं कि आधुनिक उपकरणों की सहायता से समुद्र की गहराई कैसे मापी जाती है ? वह उपकरण जिसका इस्तेमाल समुद्र की गहराई मापने के लिए किया जाता है उसे फैदोमीटर ( Fathometer ) कहा जाता है । इसे जलयान पर लगाया जाता है । यह ऐसी ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता है जिनकी आवृत्ति 20,000 मैगाहर्ट्ज से भी अधिक होती है ।
इन्हें अल्ट्रासोनिक वेव्ज कहा जाता है । उन्हें मनुष्य के कान नहीं सुन सकते । इन तरंगों को समुद्र में प्रक्षेपित किया जाता है जो समुद्र परावर्तित तरंगों को एक रिसीवर की तल से परावर्तित हो जाती हैं । इन सहायता से पकड़ा जाता है तथा उनके द्वारा समुद्र की सतह से समुद्र तल और वहां से वापस सतह तक पहुंचने के लिए गए कुल समय को मापा जाता है ।
इसके आधे समय को समुद्र के पानी में ध्वनि के आवेग से गुणा करने पर प्रयोग के स्थान पर समुद्र की गहराई का पता चलता है। इस तरह से किसी भी स्थान पर समुद्र की गहराई को मापा जा सकता है । इस तकनीक को ' ईको साऊंडिंग ' या ' ईको रैंगिंग ' के नाम से जाना जाता है ।
इस तकनीक को विभिन्न समुद्रों की गहराई मापने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है । इससे हमें यह पता चला है कि प्रशांत महासागर सबसे गहरा महासागर है । इस महासागर की औसत गहराई 4,282 मीटर है । इस महासागर में सबसे गहरा स्थान गुआम के नजदीक स्थित है तथा इसकी गहराई 10,668 मीटर है।
गुआम प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीप है । यह हवाई द्वीपों से लगभग 5000 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है । जापान की मैरीटाइम सेफ्टी एजैंसी द्वारा एक नैरो मल्टी - बीम ईको साऊंडर का इस्तेमाल करते हुए हाल ही में एक सर्वे के दौरान एक 10,924 मीटर गहरा स्थान खोजा है ।
यदि हम गहराई की बात करें तो हिंद महासागर दूसरे स्थान पर आता है । इसकी औसत गहराई 3,963 मीटर है । अटलांटिक महासागर तीसरे स्थान पर आता है , जिसकी औसत गहराई 3,926 मीटर है । उथले समुद्रों में बाल्टिक सागर का स्थान पहला है । इसकी औसत गहराई 55 मीटर है ।
पनडुब्बियां कैसे खोजी जाती हैं ?
पनडुब्बियों तथा तारपीडो जैसी वस्तुओं का समुद्र में पता लगाने के लिए जिस उपकरण का मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है उसे ' सोनार ' कहा जाता है । सोनार शब्द ' साऊंड नेवीगेशन ' तथा ' रेलिग ' शब्दों के मिश्रण से बना है।
यह उपकरण विशेष रूप से समुद्री युद्ध में बहुत उपयोगी होता है। हालांकि शांतिकाल के दौरान भी इसे जलपोतों तथा पनडुब्बियों में इस्तेमाल किया जाता है । यह 100 मीटर से लेकर 10 किलोमीटर की दूरी तक वस्तुओं का पता लगा सकता है । " सोनार के मुख्य रूप से दो भाग होते हैं । ट्रांसमीटर तथा रिसीवर।
ये दोनों भाग समुद्र के पानी में डूबे होते हैं । ट्रांसमीटर ट्रांसड्यूसर की सहायता से उच्च आवृति ( हाईफ्रीक्वेंसी ) ( 5000 से 3,00,000 हर्ट्ज ) की ध्वनि तरंगें छोड़ता है । इन तरंगों को अल्ट्रासाऊंड वेव्स कहा जाता है और मनुष्य के कान इन्हें नहीं सुन सकते । ट्रांसमीटर इन तरंगों को स्पंदनों के रूप समुद्र के नीचे
सोनार पानी में उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगें प्रक्षेपित करके कार्य करता है । इसके रास्ते में आने वाली वस्तुएं ध्वनि को वापस उछाल देती हैं । वस्तु की दूरी को इन ध्वनि तरंगों के छोड़े जाने तथा वापस पहुंचने में लगे समय को माप कर ज्ञात किया जाता है।
में हर दिशा में प्रक्षेपित करता है । समुद्र के पानी के भीतर जब भी ये तरंगें किसी चीज से टकराती हैं तो वे परावर्तित हो जाती हैं। इन परावर्तित तरंगों को रिसीवर द्वारा ग्रहण किया जाता है । तरंगों के वस्तु तक पहुंचने और फिर वापस रिसीवर तक पहुंचने में लगे समय को माप लिया जाता है ।
इसके आधे समय को जब समुद्र में ध्वनि की रफ्तार से गुणा किया जाता है तो इससे वस्तु की दूरी का पता चल जाता है । इस उपकरण में एक ' डिस्पले डिवाइस ' भी होता है , जो वस्तु की दूरी तथा स्थिति को सटीकता से दर्शाता है । सोनार हालांकि पूरी तरह त्रुटिहीन प्रणाली नहीं है ।
कुछ जलीय जीवों द्वारा उत्पन्न ध्वनियां कई बार इसके प्रक्षेपणों के साथ हस्तक्षेप करती हैं , जिस कारण वस्तु की स्थिति का कई बार सही अंदाजा नहीं लग पाता । शत्रु की पनडुब्बियों को इस उपकरण द्वारा खोज कर नष्ट किया जा सकता है । पानी के भीतर ही वस्तुओं के अध्ययन के लिए आजकल कई तरह के सोनार इस्तेमाल किए जा रहे हैं ।
सोनार उन क्षेत्रों की खोज कर जहां मछलियां विशाल दल बना कर रह रही हों , बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने के काम में भी सहायता करते हैं । आजकल पानी के भीतर पनडुब्बियों तथा तारपीडो को खोजने के लिए नीले - हरे रंग के लेजर स्पंदन भी छोड़े जाते हैं । लेज़र आधारित उपकरण भी प्रतिध्वनि के नियम पर कार्य करते हैं जैसे सोनार करता है । "
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