ढलता सूर्य लाल क्यों दिखता है ?
अमिता ने पूछा , " मैम , कल मैं अपने घर की छत पर खड़ी थी। वहां से मैंने सूर्यास्त का नजारा देखा । यह बहुत खूबसूरत था। सूर्य पूरी तरह लाल था । " मैम ने उत्तर दिया ,
"
मैं अंदाजा लगा सकती हूं कि यह कितना खूबसूरत दिखाई देता होगा परन्तु आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि इतना खूबसूरत सूर्यास्त बनाने के लिए सूर्य खुद कुछ नहीं करता । जो वस्तुएं इस प्रभाव को बनाने में सहायता करती हैं , उनमें से एक है हवा में मौजूद धूल । " ,
आप सभी जानते हैं कि सूर्य के सफेद रोशनी इंद्रधनुष में मौजूद सभी सात रंगों से बनी होती है । वातावरण में हवा , धूल तथा जलकण होते हैं और जब हवा , धूल तथा जलवाष्पों के अणुओं से होकर रोशनी गुजरती है तो वह इन कणों के कारण बिखरा दी जाती है ।
सूर्यास्त के समय सूर्य क्षितिज के समीप होता है । तब हम इसे धूल तथा हवा की अधिक घनी परत में से देखते हैं । ये सभी " कण सूर्य से आने वाली अपनी रोशनी की छोटी दूरी की तरंगों या किरणों को बदल देते हैं । केवल लम्बी तरंग सीधी पहुंचती है ।
लाल तथा संतरी लम्बी तरंगें हैं । बैंगनी , नीली तथा हरी तरंगें इस सीधी बीम से बिखर जाती हैं तथा मिल कर आसमान में चारों ओर हल्का सलेटी रंग बना देती हैं । खुद सूर्य लाल दिखाई देता है। सूर्य की लाली हवा में मौजूद कणों पर निर्भर करती है जो उसकी रोशनी को बिखराते हैं । नन्हे जलवाष्प इस पर विशेष रूप से प्रभाव डालते हैं ।
यही कारण है कि कई बादल सूर्यास्त के समय लाल दिखाई देते हैं।
सूर्य चमकता क्यों रहता है ?
अक्षय ने पूछा , " मैम , सूर्य के लगातार चमकते रहने का कारण क्या है ? " मैम ने जानकारी दी , " बहुत वर्ष पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि सूर्य इसलिए चमकता है क्योंकि यह जल रहा है परन्तु सूर्य सैंकड़ों - लाख वर्षों से गर्म है और कोई भी चीज इतनी देर तक जलती नहीं रह सकती ।
इसलिए अब वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य पदार्थ (मैटर ) को ऊर्जा में बदलता है । एक से दूसरे रूप में बदलते हुए मैटर को जलाता है । उदाहरण के लिए लकड़ी से राख । परन्तु जब मैटर ऊर्जा में परिवर्तित होता है तो भारी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बहुत कम मैटर की आवश्यकता होती है ।
अठाइस ग्राम मैटर इतनी ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है जो दस लाख टन से भी अधिक पत्थर को पिघला सकती है । " अतः हम कह सकते हैं कि सूर्य इस कारण चमकता रहता है क्योंकि यह निरंतर मैटर को ऊर्जा में बदलता रहता है और सूर्य के सम्पूर्ण पिंड का मात्र एक प्रतिशत भाग इतनी ऊर्जा प्रदान करता है जो उसे 15 खरब वर्षों तक गर्म रख सकेगी ।
क्या आप जानते हैं कि सूर्य की सतह पर तापमान लगभग 6000 डग्री सेंटीग्रेड है ? यह इतना गर्म है कि किसी भी धातु या पत्थर को गैस में बदलने के लिए पर्याप्त है । सूर्य गैसों का एक गोला है ।
सूर्य कितना गर्म है ?
कमलेश ने पूछा , " सूर्य कितना गर्म है मैम ? हम यह तो जानते हैं कि सूर्य गर्म गैसों का एक विशाल गोला है तथा गर्म गैसों की कई परतों से बना है , लेकिन यह कितना गर्म है ? " मैम ने जानकारी दी , "
वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य की सतह पर तापमान लगभग 6000 डिग्री सेंटीग्रेड है । जब इस्पात बनाने के लिए पिघले हुए लोहे का इस्तेमाल किया जाता है तो यह लगभग 1,430 डिग्री सैंटीग्रेड तक पहुंच जाता है ।
ज़रा सोचें कि जब सूर्य की सतह ऐसी होगी तो सूर्य का भीतरी भाग कैसा होगा ? खगोल विज्ञानियों का मानना है कि यह लगभग 2,00,00,000 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म होगा । खगोल विज्ञानियों ने सूर्य के भीतर की गर्मी का केवल अनुमान ही लगाया है ।
सूर्य के भीतरी भाग का अध्ययन करना कठिन है क्योंकि सूर्य गैसीय पदार्थों की चार परतों से घिरा हुआ है परन्तु यह पाया गया है कि सूर्य में पृथ्वी पर पाए जाने वाले रसायनों में से 60 से अधिक रसायन पाए जाते हैं । "
क्या सूर्य हर समय एक समान चमकता है ?
सुनयना ने पूछा , " मैम , क्या सूर्य हर समय एक समान चमकता रहता है ? " मैम ने जवाब दिया , जब हम सूर्य का जरा अधिक विस्तार से अध्ययन करते हैं तो हमें इसकी वही ' स्थाई ' या ' स्थिर ' तस्वीर प्राप्त नहीं होती । पहली बात तो यह कि पृथ्वी की तरह सूर्य एक ठोस पिंड नहीं है , कम से कम इसकी सतह पर तो नहीं ।
दरअसल सूर्य के विभिन्न भाग अलग - अलग दर से घूमते हैं। सूर्य के घूमने की दर इसकी भूमध्य रेखा पर 25 दिनों से बढ़ कर ध्रुवों पर 34 दिन हो जाती है । सूर्य की बाहरी परत को ' कोरोना ' कहा जाता है जो हल्के गैसीय पदार्थ से बना होता है । इस कोरोना का बाहरी भाग सफेद है तथा इसमें से आग की लपटें कई लाख किलोमीटर बाहर तक निकलती हैं ।
इससे सूर्य की चमक में कम लेकिन निश्चित रूप से अंतर पड़ता है। ' क्रोमोस्फेयर ' नामक सूर्य की एक अन्य परत लगभग 9,000 मील मोटी है तथा मुख्य रूप से हाईड्रोजन एवं हीलियम गैसों से बनी है । यहां से जलती गैसों के विशाल बादल ऊपर उड़ते हैं जो 10,00,000 मील की ऊंचाई तक पहुंच जाते हैं ।
इन सभी कारणों से सूर्य हमेशा एक समान नहीं चमकता । "
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