क्या शुतुरमुर्ग रेत में अपना सिर छुपाता है ?
अश्विनी ने पूछा , " मैम , जब शतुरमुर्ग रेत में अपना सिर छुपा लेता है , तो वह सांस कैसे लेता है ? " मैम ने जानकारी दी , " यह गलत प्रचार है कि शतुरमुर्ग रेत में अपना सिर छुपा लेता है । असल में किसी ने भी अभी तक उसे ऐसा करते नहीं देखा । जब शतुरमुर्ग डरा होता है तो यह धरती पर गिर पड़ता है तथा अपनी गर्दन अपने शरीर के समानांतर फैला लेता है तथा बिना हिले - डुले देखता रहता है ।
दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे यह रेत में अपना सिर छिपा रहा हो । जब खतरा पास आ जाए तो यह भाग उठता है। आप सभी जानते हैं कि शतुरमुर्ग उड़ नहीं सकता लेकिन दौड़ में शतुरमुर्ग को कोई नहीं हरा सकता । यह विश्व का सबसे तेज भागने वाला पक्षी है । इसकी रफ्तार 50 मील प्रतिघंटा होती है और इस रफ्तार पर वह कम से कम आधा मील तक भाग सकता है ।
अफ्रीकी शतुरमुर्ग विश्व का सबसे बड़े आकार का पक्षी है । इसकी ऊंचाई 2.5 मीटर तथा भार 130 किलोग्राम से अधिक होता है और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यह पक्षियों में सबसे बड़े आकार का अंडा देता है जिसकी लम्बाई 15 से 18 सैंटीमीटर तथा व्यास 13 से 15 सेंटीमीटर तक होता है । "
कठफोड़वा पेड़ों पर चोंच क्यों मारता है ?
राजवंत ने पूछा , " मैम , हम कठफोड़वों को कैसे भगा सकते हैं जो पेड़ों पर चोंच मारते रहते हैं और उन्हें नुक्सान पहुंचाते हैं ? " मैम ने उत्तर दिया , “ आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि कठफोड़वा दरअसल पेड़ों को जीवित रहने में सहायता करता है । बहुत से कीट तथा सुंडियां ऐसी हैं जो पेड़ों के लिए हानिकारक होती हैं ।
आमतौर पर ये पेड की छाल के नीचे गहरे छुपे होते हैं । यह कठफोड़वा ही है जो सीधा उन तक छेद निकालता है तथा उन्हें खा लेता है । यही कारण है कि कठफोड़वे पेड़ों पर चोंच मारते रहते हैं । यदि आप कठफोड़वे की चोंच देखें तो आप पाएंगे कि यह तीखी तथा मजबूत होती है और इसकी नोक छेनी जैसी होती है ।
इससे भी बढ़ कर , कठफोड़वे की जीभ बहुत अनोखी होती है । यह उतनी ही लम्बी होती है जितना इनका सिर । यह गोल होती है तथा इसके बाहरी कठोर सिरे पर कांटे से बने होते हैं । चोंच के भीतर जीभ स्प्रिंग की तरह मुड़ी होती है । कठफोड़वा चोंच से काफी दूरी तक जीभ को ले जा सकता है तथा कीड़ों की तलाश में पेड़ों की छाल की दरारों में काफी नीचे तक इसे ले जा सकता है।
एक और महत्वपूर्ण चीज जो याद रखने वाली है वह यह है कि कठफोड़वे हमेशा जीवित पेड़ों पर ही अपनी चोंच से प्रहार नहीं करते । ये अपनी छेनी जैसी चोंच का इस्तेमाल नष्ट हो रहे पेड़ों में छेद करने के लिए भी करते हैं ताकि अपने रहने के लिए उनमें स्थान बना सकें । इन्हें वे पेड़ ज्यादा पसंद होते हैं जिनके ऊपरी भागों में खोखला स्थान हो । कई बार वे इसमें दो रास्ते बनाते हैं जैसे कि आगे तथा पीछे दरवाजा ताकि किसी अनचाहे पक्षी या जीव के अचानक दिखाई पड़ जाने पर वे भाग सकें। "
टिड्डे के कान कहां होते हैं ?
अभय ने पूछा , " मैम , टिड्डा अपनी पिछली टांगों को अपने आगे के पंखों से रगड़ कर आवाज पैदा करता है । इसका अर्थ यह हुआ कि अन्य टिड्डे उसके ' गीत ' को सुन सकते हैं। लेकिन उनके कान कहां होते हैं ? "
मैम ने उत्तर दिया , " यह जानना बहुत रुचिकर होगा कि टिड्डों के कान बहुत असामान्य किस्म के होते हैं जो हैरानीजनक स्थानों पर बने होते हैं । पहले मैं आपको यह बता दूं कि टिड्डे आमतौर पर दो श्रेणियों में बंटे होते हैं लांग हार्न्ड तथा शार्ट हार्न्ड टिड्डे । ' लांग हॉर्न्स ' के लम्बे सींग या लम्बे एंटीना होते हैं जबकि ' शार्ट हॉन्ड ' के छोटे सींग या एंटीना होते हैं ।
' शॉर्ट हार्न्ड ' टिड्डों के कान उनकी पिछली टांगों के आधार में पेट पर बने होते हैं । इन टिड्डों को ' लोकास्ट ' तथा ' कॉमन ब्राऊन फील्ड ग्रासहॉपर ' के नाम से भी जाना जाता है, जिन्हें हम आमतौर पर देखते हैं और ये भी इस श्रेणी का एक भाग हैं । और लांग हार्न्ड टिड्डों के कान उनकी टांगों की तीन जोड़ियों में से पहली पर होते हैं ।
टिड्डों की इस श्रेणी में ' ग्रीन मीडो ग्रासहॉपर्स ' तथा ' कैटिडिड्स ' शामिल होते हैं । इनके एंटीना इनके अपने शरीर से कहीं अधिक लम्बे होते हैं । ये टिड्डे अपने अगले पंखों के आधार को आपस में रगड़ कर ' गीत ' गाते हैं । "
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