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वीर क्रांतिकारी बलिदानी बालक राजा | बालक राजा जिसने अंग्रेजों की गुलामी सहने के बजाय बलिदान होना स्वीकार किया

वीर बालक राजा

        
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दक्षिण भारत में हैदराबाद के निकट जोरापुर की एक छोटी सी रियासत थी । यहां का राजा राव बहुत कम उम्र का बालक था । 1857 ई . के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों का वह प्रबल पक्षधर था । अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए उसने अरब और रूहेला पठानों की एक शक्तिशाली सेना संगठित की थी । 





तत्कालीन हैदराबाद का निजाम अफजलुद्दौला अंग्रेजों का पक्का मददगार था । ब्रिटिश शासकों ने उसे विशेष रूप से पुरस्कृत किया था । निजाम को बरार प्रांत लौटा दिया गया था तथा उसके ऋण को भी माफ कर दिया गया । निज़ाम का प्रधानमंत्री सालारजंग भी अंग्रेजों का पूर्ण भक्त था । 





वह देशभक्त स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को पकड़वा कर अंग्रेजों के हवाले करवा देता था । उसकी इसी वफादारी के कारण ब्रिटिश सरकार ने उसे ' सर ' की उपाधि प्रदान की थी। यूरोपीय इतिहासकारों ने ग्वालियर के मंत्री सर दिनकर राव तथा हैदराबाद के मंत्री सर सालारजंग की राजभक्ति की बहुत प्रशंसा की है । 





जब सालारजंग को जोरापुर रियासत के इस वीर बालक राजा की सैनिक गतिविधि की गुप्त सूचना मिली तो वह चौकन्ना हो गया । उसने एक सुनियोजित षड्यंत्र रचा । फरवरी 1858 ई . में बालक राजा को हैदराबाद आमंत्रित किया गया । यहां आने पर सालारजंग ने विश्वासघात का सबसे निकृष्टतम नमूना पेश करते हुए उसे कैद करवा के अंग्रेजों को सौंप दिया । 




गिरफ्तारी के बाद भी बालक राजा के वीरोचित व्यवहार में कोई परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ । देश - भक्ति की भावना से ओत - प्रोत उसका आचरण सदैव प्रशंसनीय बना रहा । मीडोज टेलर नाम का एक अंग्रेज अधिकारी राजा की निगरानी रखता था । धीरे - धीरे बालक राजा इसके साथ काफी हिल - मिल गया और उसे प्यार से ' अप्पा ' कहकर पुकारता था । 





एक बार मीडोज टेलर बालक राजा से मिलने जेल आया । राजा उससे बड़े हर्ष के साथ मिला । तरह - तरह का प्रलोभन दे कर उसन राजा की आगाध देशभक्ति को बदलने की चेष्टा की । अंग्रेज रैजीडेन्ट से मिलकर क्षमा याचना करने की उसने राय दी । यह सुनकर बालक राजा ने कहा , " आपकी यह नेक सलाह मेरे गले के नीचे नहीं उतरती । 





रैजीडेंट को यह विश्वास होगा कि उसके समक्ष नत - मस्तक होकर मैं अपनी प्राणरक्षा के लिए प्रार्थना करूंगा परंतु उसका यह सोचना नितांत गलत है । मैं कायरतापूर्ण जीवन जीने की अपेक्षा मृत्यु का वरण श्रेयस्कर समझता हूं । " जब मीडोज टेलर ने उससे अन्य क्रांतिकारी नेताओं के बारे में जानना चाहा तो वह क्रोध से उबल पड़ा और गर्वीले स्वर से बोला , 





" मैं देशभक्त वीरों के नाम बताकर देशद्रोह का कलंक अपने सिर कभी नहीं ले सकता । ऐसा करना जघन्य अपराध होगा। " एक बार फिर मीडोज टेलर ने बालक राजा को फुसलाकर विद्रोहियों के गुप्त ठिकानों के बारे में कुछ जानना चाहा तो टेलर को फटकारते हुए बालक राजा बोला , " ऐसा पूछते हुए आपको शर्म आनी चाहिए । 





मैं मृत्यु का सहर्ष आलिंगन करने के लिए तैयार हूं । तोप , फांसी तथा कालापानी से भी बढ़कर देशवासियों के साथ गद्दारी करना होता है । " जब टेलर ने कहा कि क्रांतिकारियों की मदद करने के अपराध में उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा , तब बालक राजा ने बड़ी निर्भीकता से कहा , " देश हित में प्राण त्याग करने में मैं अपना परम सौभाग्य समझंगा । 





आपसे मेरा एक ही निवेदन है कि कुछ ऐसा उपाय कीजिए , जिससे चोर - डाकू की तरह मुझे फांसी पर न लटकाया जाएं। तोप के गोले से मुझे उड़ा दिया जाए । ऐसी मृत्यु पाकर मुझे अपार गौरव का अनुभव होगा । " टेलर के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो गए । बालक राजा अपने दृढ़ - संकल्प पर अटल रहा । 




मीडोज टेलर के प्रयासों के परिणामस्वरूप मृत्युदंड के स्थान पर बालक राजा को कालापानी की सजा सुनाई गई । जब सुरक्षा कर्मी उसे पानी के जहाज से अंडमान ( कालेपानी ) ले जा रहे थे तो बालक राजा ने एक अंग्रेज पहरेदार से खेल के बहाने उसकी पिस्तौल मांग ली । 





थोड़ी देर तक इस पिस्तौल के साथ वह खेलता रहा , फिर मौका पाकर उसने अपने सीने में गोली मार ली । कुछ क्षण के बाद उसके प्राण पखेरू उड़ गए । मृत्यु के एक दिन पूर्व बालक राजा ने कहा था , " कालेपानी की अपेक्षा मैं मृत्यु को गले लगाना ज्यादा पसंद करता हूं । मेरी प्रजा का सबसे तुच्छ व्यक्ति भी जेल की दीवारों में रहना स्वीकार नहीं करेगा । 





मैं राजा होकर कैद और काला पानी की संजा कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं । इस वीर बालक राजा की अमर कहानी का विस्तृत विवरण मीडोज टेलर ने अपनी अंग्रेजी पुस्तक ' द स्टोरी ऑफ माई लाइफ ' ( ईडन बर्ग लंदन 1978 ) में दिया है । 





जोरापुर के राजा का एक साथी नारकुंड का राजा भास्कर राव बाबा साहब था । उसने भी अंग्रेजों के विरुद्ध 25 मई 1858 ई . में युद्ध का ऐलान किया था । अंग्रेजी सेना को उसने बुरी तरह पराजित किया । बाद में सौतेले भाई की गद्दारी के कारण वह पराजित हुआ । 





अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार करवा के 12 जून 1858 ई . में फांसी पर लटका दिया था । उसकी रानी और मां दोनों ने मालप्रभा नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली । ऐसे शहीदों की गौरव गाथाएं देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्त्रोत बनी रहेंगी । 



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