रे एवरी
महान ओलिम्पियन - लकवे जैसी बीमारी को मात दे ओलिम्पिक में आठ स्वर्ण पदक जीते ।
ओलिम्पिक खेल प्रतिस्पर्धा का चरमोत्कर्ष है , यह ऐसा दंगल है जिसमें बड़े नाम , दमखम , ताकत व प्रसिद्धि वाले कई दिग्गजों की सिट्टी - पिट्टी गुम होते देखी गई है । ऐसे में जब हम अमेरिका के महान एथलीट रे एवरी की अविस्मरणीय शौर्य गाथा पर नजर डालते हैं तो दांतों तले उंगली दबाना एक विवशता सी बन जाती है । तब रे एवरी की स्मृति को सिजदा करने को जी चाहता है ।
रे एवरी को बचपन में ही पीलिया हो गया था । डाक्टरों ने हार मान कर उनकी जिन्दगी को व्हील चेयर के हवाले कर दिया और यह घोषणा कर दी कि अब एक लकवाग्रस्त मरीज के रूप में व्हील चेयर के सहारे ही उन्हें जिन्दगी गुजारनी होगी । लेकिन रे एवरी न जाने कौन - सी माटी के बने थे उन्हें यूं तिल तिल कर जीना व घुट - घुट कर मरना गवारा नहीं था । नियति के इस क्रूर मजाक पर पिल पड़ने का उनमें साहस था ।
अदम्य साहस की बेजोड़ प्रतिमूर्ति रे एवरी ने गहन अभ्यास प्रारम्भ किया । रात दिन घंटों तक मेहनत की तपिश में को तपाया , जिसका नतीजा यह निकला कि हैरतअंगेज तौर पर न केवल उनके पैरों में जान आ गई बल्कि उन्होंने अधिक परिश्रम के बल पर एथलैटिक्स जगत के एक महानतम योद्धा के रूप में ख्याति अर्जित की । जी हां , बचपन से लकवाग्रस्त व व्हील चेयर के सहारे जीवन बसर करने वाले इसी रे एवरी ने ओलिम्पिक खेलों में 1900 से 1908 की अवधि में एक स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आठ स्वर्ण पदक जीतकर प्रकृति और नियति के उस फैसले को उलट दिया जिसने उनकी किस्मत में व्हील चेयर व बैसाखी का सहारा लिख दिया था ।
एवरी ने 1900 के पैरिस ओलिम्पिक में एक ही दिन में ऊंची कूद , लम्बी कूद तथा त्रि - कूद ( ट्रिपल जम्प ) स्पर्धाओं के तीन स्वर्ण पदक जीत कर तहलका मचा दिया । 1904 के सेंट लुई खेलों में उनके यादगार और महान प्रदर्शन का सिलसिला बरकरार रहा तथा उन्होंने लम्बी कूद में विश्व कीर्तिमान रचते हुए पुन : तीन स्वर्ण पदक जीते । 1906 में ओलिम्पिक खेलों की शुरूआत की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर जब एथेंस में खेलों का एक विशेष आयोजन हुआ तो उसमें भी रे एवरी का दबदबा कायम रहा ।
1908 के लंदन ओलिम्पिक में दो और स्वर्ण पदक जीत कर कुल 8 ओलिम्पिक स्वर्ण पदक के साथ रे एवरी ने ओलिम्पिक प्रांगण में जीवट का अमर इतिहास लिख दिया ।
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पावो नुरमी
गड्ढे में गिर कर स्वर्ण पदक से वंचित होने के बाद चमत्कार
पावो नुरमी 1920 के एंटवर्प ओलिम्पिक में 5000 मीटर दौड़ में 23 वर्षीय मुस्कान रहित चेहरे वाला फिनलैंड वासी पावो नुरमी गड्ढे में गिर पड़े और पांच सैकंड के अंतर से स्वर्ण पदक जीता फ्रांसीसी धावक जोसेफ गीलमॉट ने लेकिन उसके बाद , अगले 8 वर्षों में पावो ने लम्बी दूरी की एक भी दौड़ नहीं हारी । कुछ दिनों बाद 10,000 मीटर दौड़ में पावो ने स्वर्ण पदक जीता । उसी तरह उन्होंने क्रॉस कंट्री स्पर्धा और दल खिताब भी जीता । अब एक महान खिलाड़ी का जन्म हो चुका था । वह मशीन कहलाए , अजेय कहलाए । फ्लाइंग फिन ( फिनलैंड का उड़ाका ) के नाम से मशहूर नुरमी के बारे में कहा जाता है कि उनकी होड़ अपने प्रतिस्पर्धियों से नहीं बल्कि वक्त से होती है ।
12 वर्ष की उम्र से ही नुरमी ने अपना विजय लक्ष्य निर्धारित कर लिया था । कई वर्षों तक वह अपने गांव के पास के जंगलों में अपना सामर्थ्य बढ़ाने का अभ्यास करते रहे । 1924 के पैरिस ओलिम्पिक में उन्होंने 1500 मीटर में स्वर्ण जीता । आश्चर्य यह था कि दोनों स्पर्धाएं एक घंटे के भीतर ही हुई थीं । दोनों में उन्होंने ओलिम्पिक रिकार्ड बनाए , फिर उन्होंने व्यक्तिगत क्रॉस कंट्री में तहलका मचा दिया , लेकिन यह उनके करियर का अंत नहीं था ।
3000 मीटर में उन्होंने अपने दल को स्वर्ण दिलवाया और इस तरह कुल पांच स्वर्ण पदक जीते । यह एक रिकार्ड था वह 10,000 मीटर की दौड़ भी जीत जाते लेकिन फिनलैंड के ओलिम्पिक अधिकारियों ने स्पर्धा से उनका नाम वापस ले लिया, अब ताकि उन्हीं का एक अन्य देशवासी विली राइटोला स्वर्ण जीत सके लेकिन चार साल बाद ही नुरमी ने अपनी यह इच्छा पूरी कर ली । एम्सटर्डम ओलिम्पिक में उन्होंने 10,000 मीटर में आपने अपना नौवां पदक जीता । यह उनका अंतिम पदक भी था 1952 में हेलसिंकी ओलिम्पिक स्टेडियम के बाहर पावो नुरमी की प्रतिमा लगाई गई और मशाल प्रज्वलित करने का सम्मान भी उन्हें ही दिया गया ।
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एडविन मोसेस
एडविन केवल 20 वर्ष की आयु में बनाया विश्व रिकार्ड
सन् 1976 के मॉन्ट्रियाल ओलिम्पिक में एडविन मोसेस ने 400 मीटर बाधा दौड़ 8 मीटर के अंतर से जीती । ओलिम्पिक इतिहास में यह अंतर सबसे बड़ा है । अगले ही वर्ष उन्होंने जर्मनी के डसेलडोर्फ में आयोजित विश्व कप में 400 मीटर बाधा दौड़ का खिताब जीता और अगले दस वर्षों तक कोई उन्हें हरा न सका । सन् 1984 के लॉस एंजल्स खेलों में भी उन्होंने बहुत आसानी से स्वर्ण पदक जीता । सन् 1980 के मॉस्को ओलिम्पिक में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं हुआ था इसलिए वह चूक गए । जब मोसेस ने विश्व रिकार्ड बनाया तब वह केवल 20 वर्ष के थे । हालांकि उसने इससे पहले किसी भी खेल प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था । उस समय वह एक इंजीनियरिंग कालेज के विद्यार्थी थे जहां ट्रैक भी मौजूद नहीं था । वह पढ़ाई में बहुत होशियार थे । तेज रफ्तार और योजनाबद्ध छलांग शैली के कारण वह इतनी आसानी से बाधाओं को पार करते चले जाते
निमोसेस जैसे उनके रास्ते में कोई बाधा ही नहीं है । लेकिन वह सिर्फ एक बाधा को पार नहीं कर सके और वह थी उनकी उम्र । 122 खिताब जीतने वाले इस विजेता के विजय अभियान पर 21 वर्षीय अमेरिकी डैनी हैरिस ने सन् 1987 में रोक लगा दी । बाद में हैरिस ने कहा , इस प्रभावशाली एथलीट को 64 हराने के बाद मैं गर्व महसूस कर रहा हूं । ' लेकिन मोसेस ने अभी हिम्मत नहीं हारी थी । उन्होंने सन् 1988 के ओलिम्पिक में 33 साल की उम्र में भी शानदार प्रदर्शन किया और कांस्य पदक हासिल किया । यह दृढ़ संकल्पी खिलाड़ी आज भी खिलाड़ियों द्वारा ली जाने वाली नशीली दवाओं के खिलाफ चल रहे आंदोलनों में बराबर शरीक रहता है ।
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