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Olympic Champion kipchoge, dickfosbury, Daley Thompson ( Hindi )

 किपचोगे ' किप ' किनो 

कभी गम कभी खुशी


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आज के युवा अफ्रीकी खिलाड़ियों को लम्बी दूरी की दौड़ में भागने की प्रेरणा साठ के दशक के ईथोपिया के अबेबे बिकिला और केन्या के किपचोगे ' किप ' किनो सरीखे धावकों से मिली है ओलिम्पिक्स स्पर्धाओं में 1968 के मैक्सिको ओलिम्पिक में दूसरी बार हिस्सा लेने वाले 28 वर्षीय हाईलैंड के नंदी आदिवासी किनो ने दौड़ने के लिए कहीं कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था । 




वह पुलिस अधिकारी था और क्रॉस कंट्री धावक भी । उसने टोक्यो ओलिम्पिक में भी भाग लिया परन्तु कोई पदक नहीं जीत पाया । मैक्सिको में किनो ने 10,000 मीटर लम्बी दौड़ में भाग लिया परन्तु खेल से जरा पहले ही उसे जबरदस्त पेट दर्द शुरू हो गया । इसके बावजूद वह दौड़ा । 




उसने दौड़ में बढ़त हासिल कर ली थी परन्तु समाप्ति से दो कदम की दूरी पर ही वह दर्द से दोहरा होकर मैदान में गिर पड़ा । फिर भी उसने छलांग लगाकर दौड़ पूरी कर ली परन्तु उसे अयोग्य ठहरा दिया गया।




चार दिन बाद किनो ने 5,000 मीटर की दौड़ में ट्यूनिशिया के मोहम्मद गमूदी को एक मीटर और 0.02 सैकंड से पीछे छोड़ रजत पदक जीता । 1500 मीटर दौड़ के दिन किनो ट्रैफिक में फंस गया । वह तुरंत कार से कूदा और एक मील का फासला तय करते हुए स्टेडियम पहुंचा । उस स्पर्धा में अमेरिकी धावक जिम रियुन पर सभी को आशा थी । 




किनो ने शुरू में ही बढ़त लेने का फैसला किया और तेजी से आगे बढ़ा । उसने 20 मीटर के फासले से दौड़ जीती जो इस स्पर्धा में अब तक का अनूठा कीर्तिमान था । सन् 1972 की म्यूनिख खेलों में किनो ने लम्बी दौड़ स्पर्धा में भाग लिया , जबकि इसमें वह नौसिखिया था । यहां उसने टीम प्रतिद्वन्द्वी बेन जिपको को पछाड़ते हुए स्वर्ण पदक हासिल किया ।




उसने 1500 मीटर दौड़ में भी रजत पदक हासिल किया । खेलों के अतिरिक्त किनो समाज सेवा से भी अपनी पत्नी फिलिज के सहयोग से उसने केन्या में एक जुड़ा अनाथालय खोला है , जो अभी भी चल रहा है ।



डिक फॉस्वरी

कूद का नया अंदाज



ऊंची कूद लगाने का इतिहास, 1968 मेक्सिको ओलंपिक खेल,डिक फॉस्वरी का इतिहास  ,



कूद का नया अंदाज डिक फॉस्वरी आज ऊंची कूद की मानक तकनीक को ' फॉस्बरी फ्लॉप ' कहा जाता है । अमेरिका के ओरेगॉन में रहने वाला डिक फॉस्बरी 1963 में विद्यार्थी था । अपने विद्यालय की खेल स्पर्धाओं में वह पारम्परिक कूद लगाने में असमर्थ था । 




इसमें खिलाड़ी लोहे की मोटी सलाख तक आकर उछल पड़ता , फिर पैर को बाहर की ओर तथा हाथ ऊपर और बाहर की तरफ लहराते हुए एक पैर को जमीन पर पटक कर उस पर छलांग लगा देता । फॉस्बरी ने प्रशिक्षक को इस बात के लिए मना लिया कि स्कूल की प्रतिस्पर्धा में वह उसे खुद की तकनीक से कूदने की अनुमति देंगे । 




स्पर्धा के दौरान फॉस्बरी ने सलाख की तरफ पीठ कर दी , पहले सिर और कंधों को जोर से झटका दिया और बाद में पैरों को । लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वह दो मीटर दूर जा पहुंचा ।


 


इस तरह ' फॉस्बरी फ्लॉप ' तकनीक का जन्म हुआ । इस तकनीक से उसने विद्यालय चैम्पियनशिप के साथ - साथ दो राष्ट्रीय चैम्पियनशिप भी हासिल की । 1968 के मैक्सिको ओलिम्पिक में दर्शकों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं , जब 21 वर्षीय फॉस्बरी ने 2.24 मीटर ऊंची छलांग भरी । यह नया ओलिम्पिक कीर्तिमान था । 




1976 के मॉन्ट्रियल ओलिम्पिक में तीनों पदक विजेताओं ने ' फॉस्बरी फ्लॉप ' तकनीक का ही इस्तेमाल किया था । आज ऊंची कूद के सभी खिलाड़ी इसी तकनीक का उपयोग करते हैं ।



डेले थॉमसन

डैकथेलॉन का चैंपियन



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Image Source-Goggle/Image By-Olympics.com


डैकथेलॉन में खिलाड़ी को इन दस खेलों में प्रवीण होना चाहि ए -शॉट पुट , डिस्कस थ्रो , हल्का भाला फेंक , लम्बी और ऊंची कूद , पोल वॉल्ट ( ऊंचे ऊर्ध्वाधार खम्भे की सहायता से छलांग ) , 100 मीटर , 400 मीटर , 1500 मीटर दौड और 110 मीटर की बाधा दौड़ । 




इसके विजेता को ऑल - राऊंड एथलैटिक्स चैम्पियन माना जाता है । 1984 के लॉस एंजल्स ओलिम्पिक में डेले थॉमसन नामक ब्रिटिश खिलाड़ी ने दो बार डैकथेलॉन में स्वर्ण पदक प्राप्त किया । ओलिम्पिक इतिहास में ऐसा करने वाला वह दूसरा खिलाड़ी था । 




नाईजीरियाई - स्कॉटिश दम्पति की इस 18 वर्षीय संतान ने 1976 सबसे कम उम्र में एथलीट के रूप मॉन्ट्रियल ओलिम्पिक में 18 वां स्थान प्राप्त किया । 1980 के मॉस्को ओलिम्पिक में उसने स्वर्ण पदक जीता । अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी से वह 150 अंक आगे था ।


 


थॉमसन के आने से पहले एथलैटिक्स खेलों में डैकथेलॉन ज्यादा लोकप्रिय नहीं था लेकिन उसने अपनी अदा और तड़क - भड़क से लोगों का दिल जीत लिया । इस स्पर्धा के हर खेल को थॉमसन ने एक नया रूप दिया । उत्साह और समर्पण के बल पर वह अपने खेल में लगातार निखार लाता रहा ।




उस समय के कई विश्वस्तरीय डैकथेलॉन ' डेले दशक के दौरान फीके पड़ गए । 1980 के दशक में 500 बार उसने 8000 से ज्यादा अंक प्राप्त किए । 1984 के लॉस एंजल्स में थॉमसन अपने चरम पर था । उसने 8797 अंकों के साथ स्वर्ण जीता और अमेरिकी बॉब मैथियास के दो डैकथेलॉन स्वर्ण पदकों की बराबरी की । बाद में आई.ए.ए.एफ. ने इस स्कोर को ठीक किया और थॉमसन को रिकार्ड 8847 अंक मिले।


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Olympic Champion kipchoge, dickfosbury, Daley Thompson ( Hindi ) Reviewed by Jeetender on August 17, 2021 Rating: 5

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