चांद का आकार बदलता क्यों दिखाई देता है?
नए चांद से पूर्ण चांद तक के दौरे को ' वैक्सिग ' कहा जाता है तथा पूरे चांद से नए चांद तक के दौर को ' वेनिंग ' कहते हैं । इस चित्र में चंद्रकला के पूरे चक्र को दर्शाया गया है ।
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा हमें एक चमकती हुई डिस्क की तरह दिखाई देता है लेकिन फिर धीरे - धीरे यह घटना शुरू हो जाता है और अमावस की रात को , जिसे न्यू ' मून नाइट ' कहा जाता है , यह पूरी तरह गायब हो जाता है । फिर यह दोबारा बढ़ना शुरू हो जाता है तथा पूर्णिमा के दिन फिर चमकती हुई पूर्ण डिस्क की तरह दिखाई देता है ।
चंद्रमा के इस आकार के बदलने को ' चंद्रकला ' कहा जाता है । आप जानते हैं कि यह क्यों होता है ? सच तो यह है कि न तो चांद का आकार बढ़ता है और न ही घटता है । इसका आकार इसलिए घटता - बढ़ता दिखाई देता है क्योंकि सूर्य के अनुसार इसकी स्थिति बदलती रहती है । हम सभी जानते हैं कि चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है तथा यह पृथ्वी के गिर्द चक्कर लगाता है।
यह लगभग 3,84,400 किलोमीटर की दूरी से पृथ्वी के चक्कर लगाता है । इसे अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 27 दिन तथा 8 घंटे का समय लगता है । यह सूर्य की रोशनी के कारण चमकता है । चंद्रमा का केवल एक भाग ही पृथ्वी की ओर होता है । हम इसका दूसरा भाग नहीं देख सकते ।
चांद जब सूर्य तथा पृथ्वी के बीच आ जाता है तो इसका चमकता हुआ भाग पृथ्वी पर लोगों को दिखाई नहीं देता तथा केवल काला या अंधेरे वाला भाग ही सामने होता है । परिणामस्वरूप चांद दिखाई नहीं देता । इसे अमावस या नए चांद का दिन कहा जाता है ।
पूर्व से पश्चिम की ओर इसके जाने के कारण पृथ्वी के अनुपात में इसकी स्थिति बदलने के कारण इसका चमकता हुआ भाग पृथ्वी से हमें दिखाई देता है । नए चांद के एक सप्ताह बाद चमकदार डिस्क का लगभग आधा भाग हमें दिखाई देने लगता है ।
धीरे - धीरे चांद का चमकता हुआ भाग बदल जाता है तथा पूर्णिमा केदिन चांद की पूरी चमकती हुई डिस्क या गोलाई हमें पृथ्वी से पूरी दिखाई देती है । इस दिन पृथ्वी सूर्य तथा चंद्रमा के बीच होती है । आगामी 15 दिनों के दौरान चंद्रमा का चमकदार भाग कम होता जाता है तथा पंद्रहवें दिन यह पूरी तरह लुप्त हो जाता है ।
संक्षेप में चांद के आकार में दिखाई देने वाले परिवर्तन इस बात पर निर्भर करते हैं कि उसका चमकदार भाग हमें पृथ्वी से कितना दिखाई देता है । यह चक्र इसी तरह चलता रहता है तथा हमें चंद्रमा की विभिन्न कलाएं दिखाई देती हैं । पूर्णिमा या पूरे चांद के दिन यह सूर्यास्त के ठीक बाद दिखाई देने लगता है तथा सूर्योदय से ठीक पहले अस्त हो जाता है । नए चांद के विभिन्न चरणों के बीच के समय को ' सायनौडिक ' माह कहा जाता है ।
किन ग्रहों के अपने उपग्रह हैं ?
सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने वाले आकाशीय पिंडों को ग्रह कहा जाता है । हमारी सौर प्रणाली में 9 ग्रह हैं : बुध ( मर्करी ) , मंगल ( मार्स ) , पृथ्वी , शुक्र ( वीनस ) , बृहस्पति ( ज्यूपिटर ) शनि ( सैटर्न ) यूरेनस , वरुण ( नेप्च्यून ) तथा प्लूटो । इन ग्रहों के गिर्द चक्कर लगाने वाले पिंडों को उनके उपग्रह ( सैटेलाईट्स ) या ' चंद्रमा ' कहा जाता है ।
वैज्ञानिक खोजबीनों से अभी तक यह पता चला है कि सभी ग्रहों के चंद्रमा नहीं होते । उदाहरण के लिए बुध और शुक्र ग्रह का कोई चंद्रमा नहीं है । हमारी पृथ्वी का एक उपग्रह है ' चंद्रमा ' । मंगल ग्रह जी के दो चंद्रमा हैं तथा बृहस्पति के सोलह । शनि ग्रह के गिर्द घूमने वाले चंद्रमाओं की संख्या है चौबीस । यूरेनस तथा वरुण ग्रहों क्रमश : पंद्रह तथा छः उपग्रह हैं । प्लूटो का एक चंद्रमा है ।
विभिन्न उपग्रहों के आकार अलग - अलग हैं । कुछ उपग्रह हमारे चंद्रमा से भी बड़े हैं । मंगल के दो उपग्रहों डीमॉस तथा फोबोस और बृहस्पति के बाहरी उपग्रह गनिमीड तथा कैलिस्टो के व्यास उतने ही विशाल हैं जितने मंगल तथा बृहस्पति । शनि तथा बृहस्पति के उपग्रहों टाइटन तथा ट्राइटन के व्यास क्रमश : 5150 तथा 2700 किलोमीटर हैं और ये हमारे चंद्रमा के व्यास से भी बड़े हैं ।
टाइटन के अतिरिक्त अन्य सभी उपग्रहों की थोड़ी - बहुत गुरुत्वाकर्षण शक्ति है । इनमें से किसी पर भी किसी तरह का कोई वातावरण नहीं है । टाइटन के कम तापमान के कारण इस पर वातावरण हैं जो मीथेन तथा हाईड्रोजन गैसों से बना है परन्तु इस उपग्रह पर किसी तरह का जीवन नहीं है ।
अभी तक हम इन उपग्रहों की उत्पत्ति के बारे में किसी ठोस सिद्धांत पर नहीं पहुंचे हैं । फिर भी ऐसा माना जाता है कि उपग्रहों की उत्पत्ति उसी तरह हुई थी जैसे हमारी सौर प्रणाली की।
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