महान देशभक्त शहीद उधम सिंह
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर ऊधम सिंह का बलिदान अनुपम एवं अद्वितीय है और उनकी गणना देश के प्रथम पंक्ति के बलिदानियों में प्रमुख रूप से होती है । अंग्रेजों का शासन था और देश गुलाम था ।
अंग्रेजी राज में भारत के अनेक होटलों के बाहर लिखा होता था कि इस होटल में हिन्दुस्तानियों का प्रवेश वर्जित है । अनेक ट्रेनों में ऐसे डिब्बे होते थे जिनके बाहर बोर्ड लगा होता था कि रेल के इस डिब्बे में केवल यूरोपियन ही बैठ सकते हैं ।
इस प्रकार के विभिन्न अपमानजनक प्रतिबंधों से भारत का जन - जन दुखी था । ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध में उलझा हुआ था । पराधीनता से तंग आए हुए भारत के नेताओं ने उस युद्ध में अंग्रेजों को इस शर्त पर सहायता प्रदान की कि युद्ध समाप्त होने के पश्चात वह भारत को होमरूल अथवा स्वशासन के अधिकार दे देंगे
परंतु चालबाज फिरंगी सरकार ने युद्ध में विजय प्राप्त करते ही आंखें बदल ली और होमरूल देने की बजाय स्वतंत्रता के मतवालों पर फिर से दमन चक्र चला दिया । उन्होंने देश पर रोलैट एक्ट लागू कर दिया तथा लिखने तथा बोलने की स्वतंत्रता भी छीन ली ।
रोलैट एक्ट के विरोध में देश भर में स्थान - स्थान पर जलसे और जलूस आयोजित किए गए तथा जोरदार प्रदर्शन और हड़तालें हुईं ।
उधम सिंह का खून खौल उठा। उन्होंने किताब में से रिवाल्वर निकाला और गोलियां चलाकर डायर को सभा के मंच पर ढेर कर दिया।
13 अप्रैल 1919 को नेताओं ने जलियांवाला बाग में एक जनसभा आयोजित करने की घोषणा कर दी । उस विशाल सभा की भारी उपस्थिति तथा लोगों के जोश और एकता को देख कर पंजाब का गवर्नर लैफ्टीनैंट माइकल ओ डायर बौखला गया और
आपे से बाहर होकर उसने जनसभा को अवैध घोषित कर दिया तथा चेतावनी दिए बिना ही शांतिपूर्ण और निहत्थे नागरिकों को अंधाधुंध गोलियों से भून डाला । जलसे लोगो में भारी भगदड़ मच गई जिससे भारी संख्या में लोग मारे गए और भगदड़ में बहुत सारे लोग इस बाग में स्थित कुएं में में गिर कर जान से हाथ धो बैठे ।
इस जनसभा में 20 वर्षीय युवक ऊधम सिंह भी उपस्थित था । इस जुल्म को देख कर उसके राष्ट्रीय स्वाभिमान को भारी ठेस पहुंची । उसने निर्दयी डायर से इस जुल्म का बदला लेने की प्रतिज्ञा की । ऊधम सिंह ने क्रांतिकारियों से संबंध जोड़े और 1923 में वह इंगलैंड गए परंतु अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहने पर 5 वर्ष बाद भारत लौट आए ।
इंगलैंड से वह एक पिस्तौल साथ लेकर आए थे जिसे अंग्रेज सरकार ने पकड़ लिया और उन पर मुकद्दमा चलाया , जिसमें उन्हें 4 वर्ष के कारावास की सजा दीं । वह 1932 में जेल से रिहा हुए । वह फिर इंगलैंड पहुंचे और डायर की ताक में रहने लगे । अंततः वह समय आ गया जब ऊधम सिंह की योजना सफल होनी थी ।
13 मार्च 1940 को लंदन में एक भारी सभा का आयोजन किया गया जिसमें जनरल डायर ने भी भाग लेना था । ऊधम सिंह बढ़िया अंग्रेजी सूट पहने , हाथ में एक किताब लिए उस सभा में पहुंच गए । अपनी किताब के पन्नों में कटिंग करके उसमें उन्होंने रिवाल्वर रख लिया था । डायर उठा और उसने अपना भाषण आरंभ किया ।
अपनी शेखियां बघारते हुए उसने कहा कि मैंने भारतीयों को सदा के लिए कुचल दिया है और अब वह स्वतंत्रता का नाम लेना भूल जाएंगे । ऊधम सिंह का खून खौल उठा । उन्होंने किताब में से रिवाल्वर निकाला और गोलियां चला कर डायर को सभा के मंच पर ढेर कर दिया ।
ऊधम सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके विरुद्ध मुकद्दमा चलाया गया । जब उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम ' राम मोहम्मद सिंह आजाद ' बताया । अंग्रेज जज के आदेश पर 31 जुलाई 1940 को वीर ऊधम सिंह को फांसी दे दी गई और इस तरह इस महान देशभक्त ने अपना जीवन देश पर कुर्बान कर दिया ।
जुलाई 1974 में इस महान स्वतंत्रता सेनानी की अस्थियां भारत सरकार ने भारी कोशिशों से इंगलैंड से भारत मंगवाई जो उनके जन्म स्थान सुनाम में उस समाधि में रखी गई , जो उनकी स्मृति में बनाई गई है ।
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