बच्चो , कहते हैं कि हैं एक चित्र वह बयान कर देता है जो कई बार एक हजार शब्द भी नहीं कर पाते । इसे देख कर सभी समझ सकते हैं कि वह क्या दर्शा रहा है। चाहे वे पढ़ना न भी जानते हों । यानी चित्रों की भाषा सभी को समझ आती है परन्तु क्या आप जानते हैं कि फोटोग्राफी की शुरूआत कब और कहां हुई ? कितना लम्बा सफर तय करके यह कला आज की आधुनिक डिजीटल फोटोग्राफी तक पहुंच पाई है ।
हम आपको फोटोग्राफी के इस सफर की कहानी विस्तार से पांच लेखों की इस श्रृंखला में चित्रों सहित बतलाएंगे । आशा है यह आपको ज्ञानवर्धक और रोचक लगेगी । फोटोग्राफी शब्द दो ग्रीक शब्दों से बना है Phos यानी लाइट तथा Graphia यानी लेखन या रेखांकन । यह नाम सर जान एफ.डब्ल्यू . हर्शेल द्वारा दिया गया था । फोटोग्राफी की कहानी आज इस्तेमाल किए जाने वाले कैमरे के आविष्कार से सदियों पूर्व शुरू हुई थी ।
कैमरे का सिद्धांत यानी एक अंधेरे कमरे में एक पिनहोल ( सूई की नोक के आकार के छिद्र ) से प्रकाश का प्रवेश होने पर उसमें बाहरी दृश्य की उल्टी छवि दिखाई देती है । 10 वीं ईस्वी में भी वैज्ञानिकों को यह जानकारी थी । 1604 में एक जर्मन ज्योतिषी जोहनेस केपलर ने फोटोग्राफी के लिए प्रयोग किए जाने वाले यंत्र का नाम कैमरा ' ओब्सक्योरा ' यानी अंधेरा कमरा ' रखा । उन्होंने ही 1609 में इस यंत्र के सुधार के लिए ' लैंस ' का उपयोग सुझाया ।
विश्व की पहली फोटो जोसफ नाइसफोर नेप्सी नामक एक फ्रांसिसी द्वारा खींची गई थी । अपने बगीचे की इस तस्वीर को खींचने में उसे करीब आठ घंटे लगे और यह फोटो काफी धुंधली तथा अस्पष्ट थी । उन्होंने यह प्रयास अपने एक मित्र लूइस जैक्यूज मैंडे डैग्यूरे के साथ किया था । नेप्सी की मृत्यु के पश्चात 1839 , में डैग्यूरे ने ही दुनिया भर को इस आविष्कार की जानकारी दी ।
इसी कारण फोटोग्राफी के आविष्कार का सेहरा डैग्यूरे के सिर ही बंधा परन्तु इस आविष्कार में एक त्रुटि थी वह यह कि ली गई फोटो आइने में छवि के समान उलट जाती थी । इसी कारण इस कैमरे से केवल स्थिर वस्तुओं के चित्र ठीक लिए जा सकते थे तथा एक बार में मात्र एक ही फोटो खींची जाती थी । 1841 में विलियम टैलबोट नामक एक अंग्रेज ने फोटोग्राफी की नैगेटिव एवं पोजीटिव प्रक्रिया को दुनिया के समक्ष पेश किया । इसका नाम कैलोटाइप रखा गया ।
इसका अर्थ था खूबसूरत चित्रांकन । गस्टेव ले ग्रे द्वारा मोमी कागज की खोज के साथ ही फोटोग्राफी में और अधिक सुधार हो गया । 1851 में फ्रेडरिक एंकर द्वारा आविष्कृत ' वैट कोलोडिअन तकनीक द्वारा फोटोग्राफी प्रक्रिया में एक्सपोजर समय केवल दो या तीन सैकंड लगता था । इससे तस्वीर की स्पष्टता में वृद्धि हुई । टैलबोट की साल्ट प्रिंट प्रक्रिया , फिर एलब्यूमिन प्रक्रिया ।
और उसके बाद मैक्स पेट्जवाल द्वारा डिजाइन किए गए लैंस ( जो 40 डिग्री के कोण तक देखने की क्षमता रखता था ) से फोटोग्राफी में सुधार होता गया । 1844 में फ्रैड्रिक वॉन मार्टेन द्वारा पैरिस में एक ऐसा कैमरा बनाया गया जो 150 डिग्री के कोण तक के दृश्य की फोटो खींच सकता था । 1852 में पहली बार लंदन का विहंगम चित्र ( ऊंचाई से लिया एरियल व्यू ) खींचा गया । 1859 में कई लैंसों वाले कैमरे का आविष्कार फ्रांसिसी फोटोग्राफर अडोल्फ इयूगेने ने किया ।
इससे फोटोग्राफी इतनी सस्ती और लोकप्रिय हो गई कि केवल फ्रांस में ही 30 हजार लोग फोटोग्राफ बन गए । 1875 में फोटो रोल तथा 1884 ईस्टमैन रोल होल्डर आविष्कार हुआ । इनका प्रयोग आज भी किया जा रहा है । 1887 में पहली बार इसके अगले ही वर्ष जार्ज ईस्टमैन ने , जो - न्यूयार्क के एक बैंक का कर्मचारी था , कोडैक नम्बर -1 को पेश किया । यह पहला हाथ में पकड़ कर फोटो खींचने वाला कैमरा था। 1898 में उसने फोल्डिंग पॉकेट कैमरा बनाया ।
जिससे 2.25x3.25 इंच के नैगेटिव बनते थे । 1888 में बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन ने 35 मिलीमीटर फिल्म फॉर्मेट डिजाइन की जो आज भी इस्तेमाल की जाती है । 1900 में 12 फुट लम्बा कैमरा बनाया गया जिससे 36x36 इंच की फोटो ली जा सकती थी । 1907 में लुमियेर भाइयों ने ' आटोक्रोमस ' नामक प्रक्रिया से तीन रंगों वाले चित्रों का चलन शुरु किया ।
कोडैक कम्पनी ने 1912 में डा . सी.ई. केनेथ मीज की अध्यक्षता में पहली बार एक अलग शोध एवं विकास विभाग बनाया । इसके चार वर्ष पश्चात कोडैक कैमरा पर पहली बार रोल फिल्म का प्रयोग किया गया । 1924 में इसी कम्पनी द्वारा पहली एक्स - रे फिल्म बाजार में पेश की गई । 1916 में जब पहली डेलाइट लोडिंग फिल्म बाजार में आई तो उसके अगले ही वर्ष दो आप्टिकल निर्माता जापानी कम्पनियों के बीच संधि हुई और निप्पोन कम्पनी का जन्म हुआ ।
1926 में इसी प्रकार जर्मनी की पांच कम्पनियां मिल कर जेइस आइकन ए.जी. जिसने कांनटैक्स कैमरा पेश किया जिसके पश्चात लेइका कैमरे बाजार में दिखाई देने लगे । इसी दौरान 1921 में पैनक्रोमैटिक फिल्म भी उपलब्ध हो गई । जैसे - जैसे समय ( 1765-1833 ) तथा बीतता गया कैमरे का आकार छोटा होता गया और गुणवत्ता बढ़ती गई । 1937 में रंगीन फोटो भी लोकप्रिय हो गए थे ।
न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ' संडे मिरर ' में पहली बार रंगीन चित्र छपे । 1930 के दशक में डे डैग्यूरे ( 1787-1851 ) मैसाच्यूसेट्स इंस्टीच्यूट आफ टैक्नोलॉजी के प्रो . हैरल्ड एड्गर्टन ने इलैक्ट्रॉनिक फ्लैश का आविष्कार किया । इससे एक सैकंड के 10 लाखवें भाग में फोटो खींचना संभव हो गया परन्तु फिर भी उसकी ड्वैल्पिग और प्रिंटिंग में काफी समय लगता था ।
इसीलिए कोडैक
के इंस्टामैटिक तथा लैंड के पोलरॉयड कैमरे पेश किए जिनसे खींची गई फोटो कुछ
सैकंडों में तैयार हो जाती थी । बस फिर क्या था फोटोग्राफी का सफर सातवें आसमान
तक जा पहुंचा। 1956 में रूसी उपग्रह स्पुतनिक द्वारा भेजे गए पृथ्वी के चित्रों
ने फोटोग्राफी की महत्ता को और अधिक बढ़ा दिया । इन्हीं चित्रों ने स्पष्ट किया
था कि धरती सपाट नहीं बल्कि गोल है ।
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