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चमत्कारी मंत्र | पंडित चेला और डाकू | Moral Stories | पंचतंत्र की कहानी

कहानी
                        
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किसी गांव में एक पंडित जी अध्यापन से होने वाली आय से गुजारा करते थे । अपने शिष्य के साथ वह किसी बड़े नगर के लिए रवाना हुए , जहां उनकी आय बढ़ सके । रास्ते में उन्हें डाकुओं ने पकड़ लिया और पंडित जी की रिहाई के बदले एक हजार स्वर्ण मुद्राओं की मांग की थी । 





शिष्य यह रकम इकट्ठी करने हेतु गांव को लौट गया था । पंडित जी ऐसा चमत्कारी मंत्र जानते थे . जिससे आकाश से रनों की वर्षा हो सकती थी । शिष्य ने उन्हें मना किया था कि वह इस मंत्र के बारे में डाकुओं को मत बताएं । डाकुओं को पता चलने पर उन्होंने उन पर इस मंत्र के प्रयोग के लिए जोर दिया था । 





 निश्चित मुहूर्त पूर्व पाठ से आकाश से रलों की वर्षा होने लगी । अब उससे आगे ... 



वर्षा जिस प्रकार अकस्मात ही आरंभ हुई । थी , उसी प्रकार बंद भी हो गई । तब डाकू सरदार ने पंडित जी से कहा- " तुमने अपना वायदा पूरा किया , अब मैं भी अपना वायदा पूरा करता हूं । जाओ , पंडित , अब से तुम आजाद हो । " पंडित जी ने सोचा कि अच्छा हुआ , जो मैंने अपने शिष्य की सलाह नहीं मानी , नहीं तो ठंड से ठिठुर कर अब तक मेरे प्राण पखेरू उड़ गए होते। 





वह चलने को उद्यत हुए , तभी एक नई मुसीबत सामने आ गई । हाथों में घातक हथियार लिए दूसरा डाकू दल वहां आ पहुंचा । उसने पंडित समेत पहले वाले डाकुओं को अपने घेरे में ले लिया । आनन - फानन में उन लोगों ने पहले वाले डाकुओं को बांध लिया और उन रत्नों को लूटने लगे जो पंडित जी ने मंत्र पाठ द्वारा वर्षा करके उत्पन्न किए थे । 





यह देख पहले वाला डाकू सरदार चीखा– “ ठहरो , तुम इन रत्नों को नहीं लूट सकते । ये हमारे है । "



 " होंगे कभी । " दूसरा सरदार उपेक्षा से बोला " अब हमारे हैं। ' 'अरे नहीं भाई , ऐसा जुल्म मत करो । " पहला डाकू सरदार गिड़गिड़ाया- “ देखो तुम भी डाकू हो और हम भी डाकू हैं । पेशे से हम दोनों भाई - भाई हैं । भाई का भाई से माल छीनना ठीक नहीं होता । यदि तुम्हें रत्न ही चाहिएं तो इस पंडित से कहो । 





इसी ने तो अपने मंत्र पाठ से इन्हें बरसाया है । इस पंडित से कहो कि एक बार फिर से रत्नों की वर्षा कराए , फिर तुम इन रत्नों से भी कहीं ज्यादा रत्न हासिल कर सकते हो । " पहले डाकू सरदार की बात का दूसरे डाकू सरदार पर उचित प्रभाव पड़ा । उसने पंडित से कहा- " हां तो पंडित जी , दिखाओ अपने मंत्र का प्रभाव । शुरू कराओ रत्नों की बौछार । " " 




" अब तो यह असंभव है दस्यु सरदार । " पंडित जी बेचैन स्वर में बोले - " शुभ योग तो व्यतीत हो चुका है । अब तो एक वर्ष बाद ही आपको रत्न मिल सकेंगे । " दस्यु सरदार ने झपट कर पंडित जी की गर्दन पकड़ जी और गुर्रते हुए बोला- " मुझे पट्टी पढ़ाता है । बदकार । चल मंत्र शुरू कर , नहीं तो अभी टेंटुआ दबा कर तेरा प्राणान्त करता हूं ।





 " पंडित जी घिघियाए- मुझे क्षमा करो सरदार , मंत्र केवल एक विशेष मुहूर्त में ही प्रभावशाली होता है । मैं सच कहता हूं . अब वह मुहूर्त ठीक एक वर्ष बाद ही आएगा । " " झूठे , ढोंगी , तुम मुझे मूर्ख नहीं बना सकते । तुम्हें मेरे लिए रन - वर्षा करानी ही होगी । " कहते हुए दस्यु सरदार ने पंडित जी की पिटाई आरंभ कर दीं । उसने उन्हें इतना मारा कि उनका प्राणांत हो गया । 





जब दूसरे दल के डाकुओं का ध्यान पंडित जी की ओर लगा था तो इसी बीच पहले दल के डाकू और सरदार किसी तरह अपने बंधन खोल कर , रत्नों को लेकर भाग निकले । यह देख कर दूसरा डाकू सरदार चिल्लाया- " अरे मूर्खो , वे लोग माल लेकर निकल गए , चलो उनका पीछा करो । वे अभी ज्यादा दूर नहीं गए होंगे । 





" पंडित जी की लाश वहीं लावारिस छोड़ कर दूसरा डाकू दल पहले वाले डाकुओं के पीछे भागा । कुछ ही देर बाद उन्होंने पहले वो डाकू दल को जा घेरा । भयंकर लड़ाई छिड़ गई जिसमें दूसरे दल के डाकुओं ने पहले दल का सफाया कर रत्नों पर कब्जा कर लिया , लेकिन लालच बहुत बुरी बला होती है । 





अब दूसरे दल में भी रत्नों को हथियाने की होड़ लग गई और वे सभी रत्न हासिल करने के लिए एक - दूसरे से झगड़ने लगे । इस प्रकार उनमें भी अधिकांश डाकू एक - दूसरे के हाथों लड़ कर मर गए । बचे सिर्फ दो । स्वयं डाकू सरदार और उसका एक सहायक । डाकू सरदार ने उससे कहा— " सुनो दोस्त , लड़ना बंद करो । 





इस माल के अब हम दो ही हिस्सेदार रह गए हैं । ऐसा करते हैं कि इसे आपस में आधा - आधा बांट लेते हैं । आधा मेरा , आधा तुम्हारा । " उसके सहायक ने उसका यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । दोनों पसीने से लथपथ हुए एक वृक्ष की छाया में आकर बैठ गए । सारे खजाने को उन्होंने उस वृक्ष के एक खोखल में रख दिया , ताकि कोई अन्य व्यक्ति अकस्मात वहां आ पहुंचे तो उसे वह खजाना दिखाई न दे। 





थोड़ी देर के बाद दोनों भूख से व्याकुल हो उठे , तब दस्यु सरदार के सहायक ने कहा " बड़ी भूख लग रही है , मित्र । चलो कुछ खा - पी लें । " सरदार बोला " भूख तो मुझे भी बहुत लगी है दोस्त पर खाना तो यहां के किसी निकटवर्ती गांव में ही मिल सकेगा । हम में से किसी एक को इस खजाने की हिफाजत के लिए यहीं रह जाना चाहिए । " 





 " ठीक है , मैं जाकर कुछ खाने को लाता हूं , तब तक तुम यहीं बैठ कर खजाने की निगरानी करो । " सहायक बोला और जाने को उद्यत हुआ । ' जल्दी लौटना । " सरदार ने पीछे से हांक लगाई भूख से मेरी आंतें कुलबुला रही हैं । " - सहायक के जाने के बाद सरदार सोचने लगा- “ मैं इसको खजाने का हिस्सेदार क्यों बानाऊं ? इस खजाने पर मेरा हक है ?





 सरदार होने के कारण इस पर मेरा ही अधिकार बनता है । " ऐसा सोच कर वह वहां से उठा और एक ऐसी चट्टान के पीछे छिप कर बैठ गया , जहां से अपने सहायक के लौटने पर उसे देख सकता था । उसने सोचा- “ जब वह वापस लौटेगा तो उसकी जमकर खबर लूंगा । देखता हूं इस बार कैसे बच पाता है मेरे हाथों से । 





" - उधर दूसरा डाकू पास के गांव से खाना लेकर और गांव से बाहर आकर एक वृक्ष के नीचे खाना खोल कर बैठ गया । पहले उसने स्वयं खाया और बाकी बचे खाने में जहर मिला दिया । रास्ते में उसने सोचा- “ खाना खाने भर की ही देर है , तत्पश्चात वह कुछ ही क्षण जीवित रहेगा । तब सारा खजाना मेरा होगा । मैं ही बनूंगा उस बेशकीमती खजाने का एकमात्र अधिकारी ।





 " लेकिन जैसे ही वह वहां पहुंचा , चट्टान के पीछे छुपे . सरदार ने पीछे से अपने बल्लम की एक जोरदार हूल उसकी पसली में दे मारी । दूसरा डाकू ' हाय ' करके औंधे मुंह गिरा । भोजन का पात्र उसके हाथ से छूट कर नीचे जा गिरा । कुछ देर तक वह छटपटाता रहा , फिर उसने दम तोड़ दिया । 





सरदार ने भोजन उठाया और मुदित मन से उसे खोल कर खाने के लिए बैठ गया , किन्तु अभी उसने दो - तीन कौर ही खाए थे कि तीक्ष्ण विष का प्रभाव उस पर हावी होने लगा । कुछ देर तक वह छटपटाता रहा , फिर उसने भी दम तोड़ दिया । दो दिन बाद जब पंडित जी का शिष्य मुद्राएं लेकर लौटा तो उसे चारों ओर लाशें बिछी मिलीं । उनमें उसके गुरु की भी लाश थी । 





ऐसा दृश्य देख कर हठात ही उसके मुंह से यह शब्द निकल पड़े- “ आखिर गुरु जी नहीं माने । उन्होंने अपने मंत्र का उपयोग ऐसे लोगों के लिए कर डाला जो उसके पात्र नहीं थे । काश ! उन्होंने मेरी सलाह मानी होती । " शिष्य कुछ देर तक यूं ही खड़ा आंसू बहाता रहा , फिर वापस अपने गांव की ओर लौट पड़ा । अब उसे .गांव वालों को बुला कर गुरु जी का विधिवत क्रिया कर्म जो कराना था । 






शिक्षा : अपने ज्ञान का उपयोग सुपात्र लोगों की परीक्षा करके ही करना चाहिए । कुपात्र के लिए ज्ञान का उपयोग हमेशा अनिष्टकारी सिद्ध होता है ।



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चमत्कारी मंत्र | पंडित चेला और डाकू | Moral Stories | पंचतंत्र की कहानी Reviewed by Jeetender on October 16, 2021 Rating: 5

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