भारतीय संस्कृति के खेवनहार सामर्थ्यशाली , महाज्ञानी , दयावान वाल्मीकि भगवान जी को सम्पूर्ण विश्व में महाकाव्य ' रामायण ' के रचयिता आदि कवि , महर्षि व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना जाता है । यह महाकाव्य गुण , अलंकार एवं ध्वनि आदि रत्नों का भंडार है ।
सम्पूर्ण श्रुतियों के सारभूत अर्थ का प्रतिपादन होने के कारण सबको प्रिय लगने वाला तथा सभी के चित्त को आकृष्ट करने वाला है । यह विभिन्न गुणों से युक्त तथा उनका विस्तारपूर्वक प्रतिपादन व दान करने वाला है । आदि कवि वाल्मीकि जी की अमर कृति श्री वाल्मीकि रामायण में महापराक्रम , सर्वानुकूलता , लोकप्रियता , क्षमा , सौम्यभाव का वर्णन है ।
तपस्वी कवि ने रामकथा के माध्यम से अलौकिक काव्य तूलिका द्वारा वैदिक साहित्य में वर्णित मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का एक ऐसा अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है जो प्राचीन होते हुए भी नवीन है । मानवीय होते हुए , भी अनुपम और दिव्य है तथा मानवीय जीवन के स्थायी मूल्यों से भरपूर है ।
महर्षि वाल्मीकि जी ने सर्वप्रथम विश्व को अहिंसा का पाठ और शांति का संदेश दिया । वह किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे । एक दिन जब वह अपने शिष्य भारद्वाज के साथ तमसा के घाट पर नित्य की तरह स्नान हेतु गए तो निकट ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा , जो कभी भी एक दूसरे से अलग नहीं होता था , विचर रहा था ।
उसी समय पापपूर्ण विचार रखने वाले निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला । पक्षी खून से लथपथ होकर गिर पड़ा और पंख फड़फड़ाता हुआ तड़पने लगा । यह देख कर धर्मात्मा ऋषि का हृदय बहुत दुखी हुआ और उस पक्षी की बुरी हालत देख दयार्द्र ऋषि ने निषाद से कहां
मानिषाद प्रतिष्ठात्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत क्राँच मिथुनादेकमवधी काम मोहितमः ।।
अर्थात यह अधर्म हुआ है । निषाद तुझे नित्य निरंतर कभी भी शांति न मिले क्योंकि तूने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली । ऐसा कह कर जब परम बुद्धिमान महर्षि ने इस कथन पर विचार किया तब उनके मन में यह चिंता हुई कि इस पक्षी के शोक से पीड़ित हो कर मैंने यह क्या कह डाला ।
अंततः उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि में ऐसे ही श्लोकों में सम्पूर्ण रामायण काव्य की रचना करूं । महर्षि जी के आश्रम के निकट स्थान पर श्री राम द्वारा परित्यक्त सीता जी विलाप कर रही थीं । वहां ऋषियों के कुछ बालक खेल रहे थे । उन्हें रोती देख कर वे आश्रम की ओर दौडे जहां कठोर तपस्या में मन लगाने वाले महाज्ञानी वाल्मीकि जी विराजमान थे ।
उन सब मुनि कुमारों ने महर्षि के चरणों में अभिवादन कर के उन्हें किसी अबला के रोने का समाचार सुनाया दुखियों , शोषितों व पीड़ितों के प्रति करुणा रखने वाले अजर , अमर त्रिकालदर्शी वाल्मीकि जी वहां पहुंच कर रघुनाथ जी की प्रिय पत्नी सीता जी को अनाथों की - सी दशा में देख कर बोले
आयान्ती चासि विक्षाता मय धर्म समाधिन । कारण चैव सर्वो में हृदयेनोपलक्षितम ।।
अर्थात जब तुम यहां आ रही थीं , तभी अपनी धर्म समाधि द्वारा मुझे इस बात का पता चल गया था कि तुम्हारे परित्याग का क्या कारण है । मैंने अपने मन से ही जान लिया पुत्री तुम राजा दशरथ की पुत्रवधू महाराज राम की पटरानी और मिथिला के राजा जनक की पुत्री हो ।
मैं अपनी दिव्य दृष्टि से जानता हूँ कि तुम निष्पाप हो अत : विदेह नंदिनी अब निश्चित हो जाओ बेटी , इस समय तुम मेरे पास हो ।
कुश और लव का जन्म:
कुश और लव दोनों भाई धर्म के ज्ञाता और यशस्वी थे । उनका स्वर बड़ा हो मधुर था । उनकी ग्रहण शक्ति अद्भुत थी । दोनों ही वेदों में पारंगत थे । महर्षि ने वेदार्थ का विस्तार से ज्ञान करवाने के लिए उन्हें सीता जी के चरित्र से युक्त सम्पूर्ण 'रामायण' महाकाव्य अध्ययन करवाया और इसके साथ - साथ गीत - संगीत व अस्त्र - शस्त्र की विद्या दी ।
श्री राम यज्ञ में महर्षि का आगमन:
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम तथा बहुसंख्यक महात्मा - मुनियों द्वारा पूजित एवं सम्मानित वाल्मीकि मुनि ने बड़े सुख से वहां निवास किया तथा कुश और लव को वीणा की लय पर मधुर स्वर में रामायण गायन आरम्भ करने का आदेश दिया । दोनों बालकों का मधुर गायन सुन कर श्री रामचन्द्र को बड़ा कौतूहल हुआ ।
उनके पूछने पर दोनों मुनि कुमार बोले कि जिस महाकाव्य द्वारा आपके इस सम्पूर्ण चरित्र का दिग्दर्शन करवाया गया है इसके रचयिता त्रिकालदर्शी भगवान वाल्मीकि जी हैं । उन्होंने ही इन सबका निर्माण कर आपके चरित्र को महाकाव्य का रूप दिया । परम बुद्धिमान वाल्मीकि जनसमुदाय के बीच सीता जी सहित प्रवेश करके रघुनाथ जी से बोले , " दशरथ नंदन !
बेटी सीता उत्तम व्रत का पालन करने वाली धर्मपरायण है । ये दोनों कुमार कुश और लव जानकी के गर्भ से जुड़वां जन्मे हैं । ये आप ही के पुत्र हैं और आप ही के समान वीर हैं । मैंने अपनी पांचों इन्द्रियों और मन बुद्धि द्वारा सीता जी की शुद्धता का भली - भांति निश्चय करके ही इसे अपने संरक्षण में लिया था । "
स्थाई जीवन मूल्यों का खजाना:
आदि कवि भगवान जो द्वारा रचित महाकाव्य ' रामायण ' में वचन पालन , भाई के प्रति स्नेह , बड़ों की पालन , शोषितों व पीड़ितों के प्रति करूणा , शांति , मानवता , शिक्षा , आदर सत्कार कर्तव्य पालन , दया , महानता , अस्त्र - शस्त्र चालन विद्या , संगीत , राजनीति व ज्ञान - विज्ञान का वर्णन है । इसी ग्रंथ में आदर्श पिता , पत्नी , पति , भ्राता , स्वामी , सेवक , आदर्श राजा प्रजा के साथ - साथ आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है ।
राष्ट्र व समाज को स्वस्थ और उन्नत बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है तथा चरित्र निर्माण में परिवार के महान योगदान को जो रामायण ने स्वीकार किया है वह एक ऐसा शिक्षा केन्द्र है जहां व्यक्ति स्नेह , सौहार्द व गुरुजनों के प्रति श्रद्धा , आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा करता है ।
🙏दोस्तों अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो आप कमेंट करना ना भूलें नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी कीमती राय जरूर दें। Discovery World Hindi पर बने रहने के लिए हृदय से धन्यवाद ।🌺
यह भी पढ़ें:-
No comments:
Write the Comments