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डार्विन की विकास थ्योरी क्या है | जिस पर मचा है बवाल | डार्विन के सिद्धांत तैयार करने में कौन थे उनके साथ ?

डार्विन के विकास थ्योरी



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चार्ल्स डार्विन 1809

बहुत समय तक यह माना जाता रहा है कि पृथ्वी पर हर तरह के जीवन की उत्पत्ति अलग - अलग रूप में हुई और किसी ने भी कभी अपना स्वरूप नहीं बदला । चार्ल्स डार्विन पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने इस धारणा को मानने से इंकार किया और विकास की आधुनिक थ्यूरी का आधार तैयार किया । 



इस एवोल्यूशन सिद्धांत के अनुसार विकास वह प्रक्रिया है जिससे पृथ्वी पर आज रहने वाला हर जीव लाखों वर्ष पूर्व यहां रहने वाले सांझे पूर्वजों के वंशज हैं । सभी पौधों तथा जानवरों का विकास एक क्रमवार तरीके से हुआ और अभी तक हो रहा है । 


चार्ल्स डार्विन का जन्म 1809 में हुआ था । उन्होंने अपनी शिक्षा एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से प्राप्त की । उन्हें जीव विज्ञान की शिक्षा में गहरी रुचि थी । जब वह मात्र 22 वर्ष के थे , तो उन्हें इंगलैंड के बीगल नामक जलपोत में विश्व भ्रमण करने का अवसर प्राप्त हुआ । यह यात्रा पांच वर्षों तक चली तथा इस समय के दौरान डार्विन ने बहुत से देशों को देखा तथा विभिन्न जीवों का अध्ययन किया । 



इसी यात्रा के दौरान ही डार्विन ने विकास तथा अनुकूलन संबंधी अपने  बहुत से विचार तैयार किए । इंगलैंड वापस लौटने के बाद डार्विन को प्रकृतिवादी एल्फ्रेड रसल बालास का एक पत्र मिला जिसने विकास के संबंध में ठीक उनके जैसे ही निष्कर्ष निकाले थे ।


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अल्फ्रेड रसेल बालास और चार्ल्स डार्विन दोनों ने मिलकर ही जिंदगी के विकास तथा अनुकूलतम संबंधी अपनी थ्योरी दी थी रसेल बालास का भी इस में महत्वपूर्ण योगदान था।  रसेल बालास एक प्रकृतिवादी विज्ञानिक थे बचपन से ही उन्हें जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी और वह तरह-तरह के कीड़े मकोड़े इकट्ठा करके उन पर शोध किया करते थे। 


वह जंगलों में जाकर तरह-तरह के जानवरों के ऊपर शोध किया करते थे। इसके लिए उन्होंने अमेरिका के अमेजन जंगल में कई साल बिताए उनके साथ उनके मित्र हेनरी वॉल्टर ने भी उनकी मदद की वह भी एक प्रकृतिवादी विज्ञानिक थे। एक बार रसेल बालास नाव से ब्रिटेन आ रहे थे। 


उस नाव में जीव जंतुओं पर शोध किए हुए नमूने थे । अचानक नाव में आग लग गई उसमें सवार लोगों को तो बचा लिया गया लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण उनके द्वारा इकट्ठे गए किए गए नमूनों को बचाया नहीं जा सका। वह सभी नष्ट हो गए ।  इस घटना के बाद भी रसेल बालास का जुनून कम नहीं हुआ और फिर वह दोबारा इस काम में लग गए। 


उन्होंने अपना विचार दिया कि जब एक प्रजाति आपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करती है तो वह धीरे-धरे दूसरी प्रजाति में बदलती चली जाती है। 1854 में रसेल बालास अपने खोज के लिए पूर्वी एशिया से देकर मलय द्वीप तक गए।


डार्विन तथा वालास द्वारा जारी एक सांझा शोधपत्र 1858 में पढ़ा गया । फिर डार्विन ने अपनी यात्रा से संबंधित तथ्यों को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया । पुस्तक का शीर्षक था ' दि ओरिजिन ऑफ स्पीसिज़ बॉय नैचुरल सिलैक्शन ' । इसका पहला संस्करण 1859 मैं प्रकाशित हुआ । 



रिकॉर्ड स्थापित करते हुए यह मार्कीट में आने के पहले दिन ही बिक गया । ' दि ओरिजिन ऑफ स्पीसिज़ ... ' डार्विन के अध्ययन के इस आधार को साबित करने का प्रयास था कि सभी जीवों को उनका वर्तमान स्वरूप पीढ़ियों के विकास के बाद मिला है और सभी के पूर्वज सांझे थे । 


इसके अतिरिक्त प्राकृतिक चुनाव में बारे उनका सिद्धांत यह बताता है कि जीवन के लिए संघर्ष में केवल उपयुक्त या सही ( फिट्टैस्ट ) ही जीवित रह पाते हैं । प्रत्येक जीव अपने पूर्वज से जरा - सा भिन्न होता है और समय के प्रवाह के साथ वह अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त करता है ।



जैसे बंदरों की प्रजाति समय के साथ साथ अपने अंदर बदलाव करते चले गए। कुछ पेड़ों पर रहने लग गए तो कुछ जमीन पर रहने के आदी हो गए । समय के साथ जिंदा रहने के लिए उनमें बदलाव देखने को मिला । धीरे-धीरे वह चारों पैर की जगह दो पैरों  पर चलना सिखा। 



हाथों का इस्तेमाल करना उनसे चीजों को पकड़ना सीखा। शिकार करने के नए-नए तरीके अपनाने लगे जिसके कारण उनके बौद्धिक विकास भी बढ़ता चला गया । जंगलों से निकलकर गुफाओं में आकर रहने लगे धीरे-धीरे आपसी मेलजोल से समूह में रहने लग गए । यह क्रमिक विकास यहीं पर नहीं रुका उन्होंने आग की खोज की और उसके बाद भोजन पका कर खाने लगे। 



यह सब लाखों साल के क्रमिक विकास और उनमें बदलाव के कारण हुआ। बंदरो से आज वह इंसान मैं बदल गए। ऐसा होने में लाखों साल लग गए ओरांगुटान बंदरों की एक प्रजाति जिसका डीएनए इंसानी डीएनए से 97% मिलता-जुलता है। लेकिन यह 3% का अंतर ओरांगुटान बंदरों को इंसान नहीं बना सकता क्योंकि यह क्रमिक विकास लाखों सालों के बदलाव का परिणाम  है।



यह पुस्तक जब पहली बार प्रकाशित हुई तो इसने एक हंगामा खड़ा कर दिया । अब डार्विन के सिद्धांतों को व्यापक तौर पर मान्यता प्राप्त है । डार्विन ने अपना सारा जीवन जीव - विज्ञान की पेचीदा समस्याओं के अध्ययन के लिए समर्पित कर दिया । 



उन्होंने अपने काम के संबंध में उठे विवादों से बचे रहने का ही प्रयास किया तथा अन्य लोगों को ' डार्विनिज्म ' के संभावित परिणामों पर बहस करने के लिए छोड़ दिया । इस महान प्रकृतिवादी का निधन 1882 में हुआ ।

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डार्विन की विकास थ्योरी क्या है | जिस पर मचा है बवाल | डार्विन के सिद्धांत तैयार करने में कौन थे उनके साथ ? Reviewed by Jeetender on September 13, 2021 Rating: 5

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