जुगनूं | प्राणी जगत का टिमटिमाता सितारा | जुगनू अंधेरे में क्यों चमकता है | क्या जुगनू के पीछे बलफ होता है?
वे इन कीटों को पकड़कर माचिस की डिब्बियों में बंद कर लेते हैं । प्रकृति में पाए जाने वाले इन अनोखे कीटों को हम जुगनूं के नाम से जानते हैं । इन्हें अंग्रेजी में फायरफ्लाई , लाइटनिंग बग या ग्लोवर्म भी कहा जाता है । आइए , इस अनोखे कीट के विषय में विस्तार से जानें ।
कीट विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाए । इस फायरफ्लाई को फ्लाई का नाम देना गलत है । कीट विज्ञान के अनुसार फ्लाई के अंतर्गत वे कीट आते हैं जिनके एक जोड़ी अर्थात दो पंख होते हैं । उदाहरण के लिए मक्खी । जुगनूं (फायरफ्लाई ) बीटल परिवार के सदस्य हैं । कीट विज्ञान के वर्गीकरण के अनुसार इन्हें कोलियाप्टेरा वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है ।
रात में जुगनूं पौधों के आस - पास उड़ते दिखते हैं पर इनका भोजन पौधे नहीं हैं । जुगनूं के लारवा अपने मुख्य भोजन के रूप में केंचुओं , घोंघों आदि का उपयोग करते हैं । इन प्राणियों की गंध से लारवा इनका पीछा करते हैं । शिकार के पास पहुंच कर लारवा कुछ घातक रसायनों को अपनी सूंड की सहायता से शिकार के शरीर में डाल देता है , जिससे शिकार घायल हो जाता है और लारवा उसे मजे से खा जाता है ।
वयस्क जुगनुओं के जबड़े हंसिए के समान धारदार होते हैं । शिकार के अभाव में वयस्क जुगनूं छल - कपट द्वारा अपनी ही जाति के अन्य कीटों को बेवकूफ बनाकर खा जाते हैं । कीट विज्ञान में जुगनुओं के इस व्यवहार को ' एसिव मिमिक्री ' कहा जाता है । कभी भी शिकार के अभाव में वयस्क जुगनूं कई दोनों तक फूलों के मकरंद पर भी जीवित रह जाते हैं ।
अधिकतर जुगनुओं के शिशु ( लारवा ) सड़ी हुई लकड़ी , अन्य जंगली अवशेषों या तालाबों के आस - पास रात को दिखाई पड़ जाते हैं । एशिया में पाए जाने वाले कुछ विशेष प्रकार के जुगनूं पानी के अंदर रहते हैं । सांस लेने के लिए इनमें विशेष प्रकार के श्वसन छिद्र पाए जाते हैं । जलीय घोंघों को खाकर ये जुगनूंजीवित रहते हैं। कुछ जुगनूं शाकाहारी घोंघों पर जीवित रहते हैं ।
ये तितली की तरह लटकती हुई पत्तियों पर अपनी प्यूपावस्था गुजारते हैं । वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि अधिकतर जुगनूं पानी या जल स्रोतों के आस - पास रहते हैं । विश्व के अति शुष्क क्षेत्रों में भी जुगनू देखे गए हैं । यदि विविधता के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एशिया व मध्य एवं दक्षिण अमेरिका में सबसे अधिक किस्मों के जुगनूं पाए जाते हैं ।
वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि जुगनुओं द्वारा रोशनी उत्पन्न किए जाने के कई कारण हैं । वैज्ञानिकों का मानना है कि अपने दुश्मनों को डराने के लिए जुगनूं रोशनी उत्सर्जित करते हैं । दुश्मनों के आकार , प्रकार व आक्रमण की तीव्रता के अनुसार जुगनूं रोशनी की तीव्रता व मात्रा को घटाते - बढ़ाते रहते हैं ।
रोशनी उत्सर्जित करके वे दुश्मनों को शायद यह बता देना चाहते हैं कि उनमें रोशनी उत्पन्न करने वाले घातक रसायन भरे पड़े हैं । अत : उनका स्वाद अच्छा नहीं है । जुगनुओं के शिशु व वयस्क दोनों ही रोशनी उत्सर्जित करते हैं । उत्तरी अमेरिका के अधिकतर जुगनू मादा कीट को आकर्षित करने के लिए भी रोशनी का प्रयोग करते हैं ।
नर एक निश्चित समय के अंतराल में रुक - रुक कर रोशनी उत्सर्जित करता है। जिस मादा को वह नर पसंद आ जाता है वह भी उसी अंतराल में उसी प्रकार रोशनी उत्सर्जित करने लगती है ।
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रोशनी का उत्सर्जन एक रासायनिक अभिक्रिया है । इन कीटों में ल्यूसीफेरीन नामक एक रसायन होता है जो कि उनके शरीर में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के एन्जाइम ल्यूसीफेरेस व ऑक्सीजन की सहायता से क्रिया करके रोशनी उत्पन्न करता है ।
रोशनी के आने व जाने का नियंत्रण जुगनूं कैसे करते हैं।
इस विषय में कीट वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं । अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि जुगनूं में ऑक्सीजन आपूर्ति को रोकने व आरम्भ करने की क्षमता होती है । जब ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है तो रोशनी उत्सर्जित होती है । जब ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होती तो उत्सर्जन बंद हो जाता है ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि जुगनूं लगातार रोशनी का उत्सर्जन करते रहें तो उनके शरीर का तापक्रम इतना अधिक हो जाएगा कि उनकी जान को खतरा हो सकता है । यही कारण है कि बीच - बीच में रोशनी का उत्सर्जन बंद हो जाता है । यह विडम्बना ही है कि हम अब भी जुगनुओं के विषय में बहुत कम ही जान पाए हैं ।
हमारे देश के कई हिस्सों में जुगनुओं का प्रयोग औषधि के रूप में भी होता है । प्रतिवर्ष करोड़ों जुगनूं इसी तरह औषधि के रूप में काम में लाए जाते हैं । यूं तो किसानों के अपने मित्र केंचुए के दुश्मन के रूप में जुगनूं शायद पसंद न आए पर बच्चों के लिए प्रकृति के ये अनुपम प्राणी कौतुहल का विषय सदैव ही बने रहेंगे ।
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