महान ओलिम्पियन
ओलिम्पिक मैं पेंटाथलाॅन व डेकथेलाॅन स्पर्धाओं में विश्वव कीर्तिमान रच कर स्वर्णिम प्रदर्शन करने वाले जांबाज अमेरिकी एथलीट जिम थॉर्पे को 20 वी सदी केे प्रथम अर्ध के महानतम अमेरिकी एथलीटों मेंं गिना जाता है।
ओलिम्पिक खेलों में पेंटाथलाॅन व डेकथेलाॅन जैसी जटिल महास्पर्धाओं में अमेरिका केेे लिए दो स्वर्ण पदक जीतने वाले इस महान एथलीट के साथ ऐसा अन्याय हुआ। जिसे उसकेे जीते जी सुधारा नहींं जा सका। उसका पूरा नाम था जेम्स फ्रांसिस थॉर्पे जब उन्होंने स्टॉकहोम में दो स्वर्ण पदक जीते तो वह अमेरिका केे राष्ट्र हीरो बन गए मगर यह वह वक्त था
जब ओलिम्पिक खेलोंं में पेशेवर खिलाड़ियों केे खेलने पर रोक लगी हुई थी। ऐसे में 1913 में एक पत्रकार नेेेेेेे अंतराष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी के समक्ष कुछ ऐसे तथ्य प्रस्तुत किए जिनमें इस बाात का उल्लेख था कि 1912 के स्टॉकहोम ओलिम्पिक से पूर्व थॉर्पे ने बेसबॉल की पेशेवर लीग में भाग लिया व 25 डॉलर का पारिश्रमिक भी प्राप्त किया।
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जेम्स फ्रांसिस थॉर्पे |
ओलिम्पिक कमेटी ने थॉर्पे कि इस पेशेवर भूमिका के बावजूद उनकेे द्वारा इस तथ्य को छिपाकर ओलिम्पिक मेंं उतरने कोो धोखाधड़ी करार देते हुुए उनसे 1912 में जीते गए स्वर्ण पदक वापस छीन लिए लेकिन वास्तविकता यह थी कि जिम पेशेवर- गैर पेशेवर के इस विवाद से बिल्कुुल अनभिज्ञ थे
तथा सही मायने मेंं पेशेवर खिलाड़ी नहीं थे। उन्होंने 1910 में रॉकी माउंट नामक क्लब की ओर से खेलने के लिए प्रतिदिन 2 डॉलर केेे हिसाब से कुल पच्चीस डॉलर का पारिश्रमिक हासिल किया था। उन्हें इस बात का तनिक भी ज्ञान नहींं था, इससे उनका गैर पेशेवर स्वरूप पेशेवर में तब्दील हो जाएगा लेकिन ओलिंपिक कमेटी ने वास्तविकता की तह तक गए ही एक तरफा निर्णय कर जिम थॉर्पे कि महानता को बेइज्जत किया।
जिम थॉर्पे को इससे बड़ा गहरा सदमा लगा। वह भीतर ही भीतर भीतर टूट सेे गए। उनका एथलेटिक करियर इससे एक तरह से चौपट हो गया, क्योंकि न केवल उनसे गाड़ी मेहनत वह समर्पण के बल पर अर्जित पदक वापस ले लिए गए बल्कि उन्हें खलनायक तक करार दे दिया गया।
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एथलेटिक के महान खिलाड़ी जिम थॉर्पे |
जिम थॉर्पे अपने दामन पर लगे इस दाग को धो देनेे के बारंबार संघर्षरत रहे। उन्होंने अपनी सफाई और सच्चाई को पेश कर खुद को निष्कलंक साबित करने का प्रयास किया। मगर उनकी विनती व दलीलों को हर मंच पर अस्वीकार कर दिया गया।
थॉर्पे के जीवन काल में यह झूठा आरोप हटाया नहीं नही जा सका। और अपने सीने में दुख का पहाड़़ लिए यह एथलीट 2 मार्च सन 1953 को इस दुनिया को अंतिम सलाम कह गया। मगर उनकी मौत के 29 वर्ष के बाद जाकर ओलिम्पिक कमेटी को अपनेेे उस गलती का एहसास हुआ।
तथा उन्होंने इस दिवंगत एथलीट की 1912 की स्वर्णिम सफलताओं को मान्यतााा प्रदान कर उसके स्वर्ण पदक उनके बच्चों को 13 अक्टूबर 1982 को लौटा दिए। जीते जी ना सही आखिरकार मरने के बाद जिम थॉर्पे के साथ न्याय हुआ और इससे उनकी आत्मा को शांति मिली होगी।
जिम थॉर्पे एक बहुआयामी एथलीट थे। एथलेटिक्स के साथ-साथ फुटबॉल, बास्केटबॉल, बेसबॉल, में भीी उन्होंने अपनी प्रतिभा की अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने कई फिल्मों मेंं भी अभिनय किया तथा उनके जीवन पर एक फिल्म का निर्माण किया गया ।
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