अमृता प्रीतम सुप्रसिद्ध पंजाबी लेखिका और कवयित्री ( 31 अगस्त , 1919 ) , आचार्य शिवपूजन सहाय ( 9 अगस्त , 1893 ) लेखक
उनकी कहानियों में मानवीय संवेदना के साथ प्रेम की सुकोमल भावना को भी स्थान मिला । वह आध्यात्मिकता से भी खूब प्रभावित रहीं और सूफीवाद की प्रेम भावना उनके लेखन की प्रेरणा रही । उनकी कविताओं में मन की कोमल भावनाएं बार - बार उभर कर सामने आती हैं ।
अपनी भावनाओं को उन्होंने कभी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया तो कभी कहानियों के माध्यम से । साहित्य की हर विधा में उन्होंने कुछ न कुछ लिखा । उनके निबंध भी उतने ही लोकप्रिय हुए जितने उनके उपन्यास । ' रसीदी टिकट ' उनकी जीवनी है । हालांकि यह काफी विवादास्पद रही ।
पंजाबी भाषा को दिए गए उनके योगदान के लिए उन्हें सन् 1982 में ज्ञानपीठ पुस्कार मिला । पंजाबी भाषा के लिए पहला पुरस्कार हासिल करने वाली वह पहली लेखिका हैं । सन् 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली भी वह पहली महिला लेखिका हैं । पद्मश्री पाने वाली भी वह पहली पंजाबी महिला हैं ।
बाद में उन्हें पद्म विभूषण भी प्रदान किया गया । दिल्ली , जबलपुर और विश्व भारती विश्वविद्यालयों ने उन्हें डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की । सन् 1986 से 1992 तक वह राज्यसभा की मनोनीत सदस्य भी रहीं । उनका साहित्य विश्व स्तर पर सराहा गया । हालांकि वह समाजवाद की विरोधी थीं लेकिन उनका साहित्य पूर्वी यूरोपीय भाषाओं में भी अनुदित हुआ ।
इसके अलावा विश्व की कई भाषाओं में उनके साहित्य का अनुवाद हुआ । मिशिगन विश्वविद्यालय से प्रकाशित होने वाली महफिल पत्रिका का एक अंक उनकी रचनाओं को समर्पित था ।
रचनाएं
उनकी रचनाओं में ' ठंडियां किरना ' , ' सुनेहरे कागद ते कैनवास ' ( कविता संग्रह ) ' डाक्टर देव ' , ' पिंजर ' , ' हरदत्त दा जिंदगीनामा ' , ' न राधा न रुक्मिणी ' ( उपन्यास ) तथा ' रसीदी टिकट ' और ' हुजूरे दी मिट्टी ' ( जीवनी ) शामिल हैं । दिल्ली सरकार ने उन्हें सदी का लेखक होने का सम्मान भी दिया था। 31 अक्टूबर 2005 को दिल्ली में उनका दुखद निधन हो गया।
आचार्य शिवपूजन सहाय (लेखक)
आचार्य शिवपूजन सहाय ( 9 अगस्त , 1893) |
सन् 1923 में वे मतवाला मंडल के सदस्य बने और ' आदर्श', ' उपन्यास तरंग ' तथा ' समन्वय ' जैसे पत्रों का सम्पादन किया । उन्होंने ' माधुरी ' और ' जागरण ' जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया । वह विभिन्न विधाओं में लिखा करते थे । सामाजिक समस्याएं , भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन , शोध , ग्रामोद्धार जैसे विभिन्न विषयों पर उनकी लेखनी बराबर चलती रही ।
' ग्राम सुधार ' और ' अन्नपूर्णा के मंदिर ' में ये दोनों पुस्तकें ग्रामोद्धार से जुड़ी हुई हैं । ' मां के सपूत ' में बच्चों के लिए उपयोगी सामग्री है तो अर्जुन ' और ' भीष्म ' नामक पुस्तकों को इन चरित्रों को जीवनी के रूप में लिखा गया है । दो घड़ी ' उनकी हास्यपरक कृति है तो ' देहाती दुनिया ' एक चरित्र प्रधान औपन्यासिक रचना है ।
' विभूति ' कहानियों का संग्रह है । हिंदी गद्य साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान है । उनकी भाषा बहुत ही सहज है । आम बोलचाल के शब्दों और उर्दू के शब्दों को वह प्रमुखता देते थे । उनकी मुहावरेदार और सरल भाषा पाठकों का मन मोह लेती है । वह कई बार गद्य में भी पद्य का - सा प्रभाव डालने के प्रयास किया करते थे ।
इसके बावजूद उनके साहित्य में गंभीरता का अभाव नहीं आया । अक्सर उनकी भाषा में वक्तृत्वकला की छटा भी नजर आती है । शिवपूजन सहाय ने जीवन - भर हिंदी साहित्य की सेवा की । उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य हिंदी भाषा की उन्नति और उसका प्रचार - प्रसार था ।
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद नामक संस्थाएं इनके प्रयासों का सुफल हैं । बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ( पटना ) ने उनकी विभिन्न रचनाओं को चार खंडों में ' शिवपूजन रचनावली ' के नाम से प्रकाशित किया है । इसके अलावा बिहार से ही उनके स्मरण में ' स्मृति ग्रंथ ' भी प्रकाशित हुआ है । 31 जनवरी 1963 पटना में उनका निधन हो गया।
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