क्या समुंद्र सचमुच जीवित है एक रोमांचित आत्मकथा ( कहानी )
एक रोमांचित आत्मकथा
दोस्तों बात आज से 5 साल पहले की है मैं हरियाणा के एक छोटे से शहर में रहता हूं । आज से पहले मैंने कभी समुंद्र नहीं देखा था। यह कोई हंसने वाली बात नहीं है मुझे मालूम है देश की एक बहुत बड़ी आबादी समुंद्र किनारे रहती है । उनके सामने यदि कोई कहे मैंने समंदर नहीं देखा तो उनके लिए यह हास्यास्पद होगा ।
लेकिन मुझे मालूम है मेरे जैसे बहुत से लोग होंगे जिन्होंने अभी तक समुंद्र नहीं देखा होगा। मैं भी उन्हीं लोगों में से एक था। समुंद्र को मैंने केवल मोबाइल और टेलीविजन में ही देखा था। मैं बच्चे से बड़ा होकर जवान हो गया लेकिन अभी भी मेरे अंदर समुद्र को देखने की अभिलाषा जीवित थी।
एक दिन मेरे जीवन में कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे समुंद्र को देखने की संभावना बनती हुई दिखाई देने लगी । दरअसल मैंने एक कंपनी में इंटरव्यू दिया था। वह एक शिपिंग कंपनी थी । मुझे इंटरव्यू में सिलेक्ट कर लिया गया था । इंटरव्यू लेने वाली मैडम बहुत ही अच्छी थी। उस कंपनी ने मुझे मेडिकल कराने के लिए मुंबई जाने को कहा।
आपको मैं बता दूं वह एक झूठी कंपनी थी जिस के झांसे में मैं आ गया था। मेरे साथ साथ बहुत से लोग नौकरी के नाम पर उस कंपनी के बहकावे में आ गए थे लेकिन इसका हमें बाद में पता चला। मैं बहुत खुश था क्योंकि किस्मत से मुंबई में मेरे मामा जी का घर भी है। मैं पहली बार मुंबई जा रहा था।
मैं बहुत खुश था। एक खुशी नौकरी की और दूसरी समुंद्र को देखने की, आखिरकार वह दिन आ गया । मेरे परिवार के लोग स्टेशन तक मुझे छोड़ने के लिए आए मेरे पिता जी बहुत चिंतित थे क्योंकि मैं पहली बार घर से इतनी दूर किसी बड़े शहर के लिए जा रहा था। मैंने ट्रेन पकड़ी और मुंबई के लिए रवाना गया। ट्रेन से मुंबई का सफर थका देने वाला लेकिन रोमांच से भरपूर था।
ट्रेन देर रात छत्रपति शिवाजी टर्मिनल स्टेशन पहुंची और वहां मुझे मेरे मामा जी मिले । वह मुझे साथ लेकर घर की ओर चल दिए। शिवाजी टर्मिनल स्टेशन से हमें विले पार्ले स्टेशन जाना था। इसके लिए हमने एक लोकल ट्रेन पकड़ी वह लोकल ट्रेन उस लाइन की आखरी ट्रेन थी जिसके कारण उसमें ज्यादा भीड़ थी।
उस ट्रेन में एक युवक युवती एक दूसरे के बहुत करीब और रोमांटिक अंदाज में थे। और अश्लील हरकतें कर रहे थे उनको वहां पर बैठे लोगों की कोई परवाह नहीं थी । उस ट्रेन में बैठे लोगों की भी उन दोनों में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। शायद उनके लिए यह आम बातें थी । लेकिन मेरे लिए यह बहुत अजीब था।
हमारे शहर में किसी लड़का लड़की का सार्वजनिक स्थल पर अश्लील हरकतें करना बहुत बड़ी बात मानी जाती है। ऐसा कुछ करने पर शायद उन दोनों की पिटाई भी हो जाती है। लेकिन यह मुंबई शहर है शायद इसीलिए इसे माया नगरी कहते हैं। मैं लंबे सफर से बहुत थक गया था मामा जी ने बहुत ही अच्छा खाना बनाया जिसे खाकर मैं सोने चला गया। मुझे बहुत ही अच्छी नींद आई।
अगली सुबह मामा जी मुझे साथ लेकर मेरा मेडिकल कराने उस हॉस्पिटल गए जहां मुझे जाना था। लगभग आधे घंटे का समय लगा और मेरा मेडिकल पूरा हो गया। हम लोग घर आ गए। अब तक मुझे बड़े शहर में सब कुछ नया नया जैसा लग रहा था । ऊंची-ऊंची गगनचुंबी बिल्डिंग तरह-तरह के लोग अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग जिन का पहनावा भी अलग-अलग था । यह सब देख कर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था।
मुंबई शहर बहुत ही व्यस्त शहर है। यहां पर किसी के पास समय नहीं है। यहां पर छोटे से लेकर बड़े लोग हमेशा व्यस्त रहते है । मेरे मामा जी की दिनचर्या भी बहुत ही व्यस्त थी। मामा जी के घर से जुहू चौपाटी जहां से समुंद्र कुछ ही दूरी पर था। मामा जी ने मुझे कहा, "यह रास्ता सीधा जुहू चौपाटी जाएगा तुम घूमते हुए चले जाओ। मुझे आज बहुत जरूरी काम है इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता ।"
मुझे मामा जी के दिनचर्या का पता था । वह सचमुच बहुत व्यस्त रहते थे । मैं वैसे भी अकेले घूमने-फिरने का शौकीन हूं। धीरे-धीरे मैं जुहू चौपाटी के रास्ते पर निकल गया। थोड़ी देर बाद मुझे एक घर के सामने लोगो की भीड़ दिखाई दी। मैंने सोचा, "लगता है शायद उस घर में झगड़ा हो रहा हैं जिसे देखने के लिए लोग यहां इकट्ठे हो गए हैं।"
मुझे भी कोई काम नहीं था इसलिए उत्सुकता वश मैं भी वहां पहुंच गया। आखिर जाना तो जाए मामला है क्या ? वहीं पर एक सिक्योरिटी वाला था जो लोगों को गेट से हटने के लिए कह रहा था। वहां खड़े सभी लोग थोड़े से खुले हुए गेट के अंदर उत्सुकता वश झांक रहे थे। मैंने भी उत्सुकतावश अंदर की तरफ झांका लेकिन मुझे अंदर कुछ दिखाई नहीं दिया।
उसके बाद सिक्योरिटी गार्ड ने गेट का दरवाजा पूरा बंद कर दिया। मैंने वहां खड़े एक व्यक्ति से पूछा भाई साहब, "यहां क्या हो रहा है यहां लोग क्यों इकट्ठा है क्या इस घर में झगड़ा हो गया है ?" मेरी बातें सुनकर वह व्यक्ति जोर-जोर से हंसने लगा। उसने मुझसे कहा, "लगता है तुम यहां के नहीं हो इस शहर में नए आए हो" मैं भी सोचने लगा, "आखिर इन्हें कैसे पता चला कि मैं यहां नया हूं क्या यह मेरे बारे में जानते हैं?"
उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा, "बेटा कहां से आए हो" ? मैंने कहा हरियाणा से अभी कल ही तो आया हूं उन्होंने कहा, "जानते हो यह किसका घर है" ? मैंने कहा, "नहीं मैं नहीं जानता" फिर उन्होंने कहा, "अमिताभ बच्चन जी को जानते हो" मैंने कहा, "उन्हें कौन नहीं जानता" यह उनका ही घर है। यह शब्द सुनकर मैं भौचक्का रह गया।
अचानक मेरी नजर गेट के बगल में लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर "जलसा" लिखा हुआ था। अरे यार यह तो सचमुच अमिताभ बच्चन जी का घर है मैं सोचने लगा । मुंबई कैसा शहर है जाने अनजाने में ही मैं अमिताभ बच्चन के घर तक आ पहुंचा। चलो अब तो अमिताभ बच्चन जी को देखकर ही जाऊंगा। मैंने मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से पूछा, "क्या अमिताभ बच्चन जी बाहर आएंगे"?
उन्होंने कहा, "जी हां आएंगे वह अपने फ्रेंड से मिलने आते हैं आज भी वह आएंगे" मैंने सोचा, "समुंदर तो किसी और दिन देख लूंगा आज अमिताभ बच्चन जी को देख लेता हूं।" थोड़ा और इंतजार करने के बाद वहां लोगों की खचाखच भीड़ जमा हो गई । सभी लोगों के मोबाइल हवा में ऊपर की तरफ उठ गए। मैं समझ गया कि अब अमिताभ बच्चन जी निकलने वाले हैं।
तभी एकाएक दरवाजा खुलता है मेरे सामने लंबे से कद काठी वाले मिस्टर अमिताभ बच्चन जी निकले जिन्होंने सफेद रंग का कुर्ता और एक सफेद रंग की शॉल लपेट रखी थी। वह अपने हाथों को ऊपर उठाएं लोगों का अभिनंदन कर रहे थे। लोग चिल्लाने लगे और अपने मोबाइल से उनकी फोटो खींच रहे थे अमिताभ बच्चन जी को देखकर मैं देखता ही रह गया कि क्या असल में अमिताभ बच्चन जी ऐसे दिखते हैं।
अमिताभ बच्चन जी ने वहां कुछ लोगों से हाथ मिलाया और कई लोगो के साथ सेल्फी भी ली। मैंने भी वहां पहुंचने की कोशिश की पर मैं पहुंच ना सका। मैंने उन्हें देख लिया मेरे लिए तो वही काफी था। उन्होंने कुछ समय लोगों को दिया और उसके बाद फिर वह घर के अंदर चले गए। जिसके बाद गेट बंद कर दिया गया। मैंने सोचा, "आज तो मामा जी को सुनाने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है"।
इसके बाद में सीधा जुहू चौपाटी के लिए निकल पड़ा। जैसे ही मैं जुहू चौपाटी के नजदीक पहुंचा मुझे जोर-जोर से लहरों की आवाज सुनाई देने लगी। चेहरे पर ठंडी हवा और पानी की हल्की-हल्की बूंदे महसूस होने लगी। मैं समझ गया कि मैं समंदर के बहुत नजदीक हूं आज मेरा यह सपना भी पूरा हो गया। उसके बाद मुझे एक विशाल समुंद्र दिखाई दिया उसकी विशालता को देखकर मैं हैरान रह गया ।
मेरे मुंह से निकला "ओ माय गॉड हे ईश्वर क्या सच में समुंद्र ऐसा होता है यह कितना विशाल है क्या इसी के अंदर सारी मछलियां सार सारे जीव जंतु रहते हैं जिन्हें आज तक मैं टीवी पर देखता आ रहा था"। धीरे-धीरे में उसके नजदीक जाने लगा। मैंने अपने जूतों को अपने हाथ में ले लिया और पेंट को ऊपर तक कर लिया समंदर के नजदीक पहुंचने से पहले ही एक छोटी लहर मेरे पैरों को धो कर चली गई जैसे वह मेरा स्वागत कर रही हो।
समुद्र की इस विशाल उदारता को देखकर मैं स्तब्ध रह गया और सोचने लगा इस विशाल समुंद के आगे मेरी क्या औकात लेकिन यह समुंद्र अपने विशालता का घमंड किए बिना मेरे पैरों को धो कर चला गया यह कितना उदार और महान है। समुद्र जैसे सिखा रहा हो मनुष्य को कभी घमंड नहीं करना चाहिए।
समुंद्र की लहरें जो मेरे समीप आ रही थी मैंने हाथों से उसे उठाया और सबसे पहले उन्हें प्रणाम किया। यह मेरे अंदर की श्रद्धा थी जिसे मैं व्यक्त करना चाहता था जो इतना विशाल है इतने लोगों को जीवन देता है उसे तो हमें सबसे पहले प्रणाम ही करना चाहिए। धीरे-धीरे मैं अंदर की तरफ बढ़ने लगा लहरें मुझसे बहुत दूर थी मैं उनके और समीप जाने लगा। इतने में एक बड़ी लहर का झोंका आया मैं पीछे की तरफ भागने लगा लेकिन रेत में ज्यादा दूर तक नहीं जा सका और उस लहर में मुझे भिगो दिया।
मुझे ऐसा लग रहा था मानो समुंद्र मेरे साथ खेल रहा हो । ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो समुंद्र सचमुच जीवित है और मेरे साथ खेल रहा है । उस दिन जुहू बीच पर बहुत सारे लोग थे बहुत से लोग बच्चे, औरतें, समुंदर में नहा रहे थे। बच्चे समंदर की लहरों के साथ खेल रहे थे मानव समुद्र की लहरें किसी बच्चे के समान अठखेलियां ले रही हो ऐसा प्रतीत हो रहा था ।
कुछ लोग समुद्र किनारे घूम रहे थे और बहुत से लोग समुद्र के किनारे फोटो खिंचवा रहे थे। बीच पर बहुत सारी तरह-तरह की दुकानें सजी थी। जिसमें तरह-तरह के भोजन बेचे जा रहे थे। भीड़ से दूर समुद्र के किनार-किनारे मैं दूर तक निकल गया मैंने वहां अजीब सा ही नजारा देखा ।
मैंने देखा समुंद्र के किनारे बहुत से प्रेमी युगल बैठे हुए थे। ये सभी अपने रोमांटिक दुनिया में मस्त थे कौन आ रहा है और कौन जा रहा है उनको किसी की परवाह नहीं थी। शायद वह मुंबई के भीड़भाड़ से दूर कुछ सुकून पाने के लिए यहां आ जाते हैं । समुंदर किनारे मुझे सीप और रंग-बिरंगे पत्थर मिले जिन्हें मैंनें यादगार के तौर पर अपने पास रख लिए।
वहां पर बहुत से फोटोग्राफर घूम रहे थे जो कि वहां पर आए लोगों की फोटो खींच रहे थे। उन्होंने मेरे से फोटो खिंचवाने का आग्रह किया और समंदर किनारे मैंने एक खूबसूरत सी फोटो खिंचवाई। उस फोटोग्राफर ने उसी समय मुझे वह फोटो निकाल कर दे दिए जो आज भी यादगार के तौर पर मेरे पास है। मुझे जोरों से भूख लगी थी। इसलिए मैं एक रेस्टोरेंट्स में गया। वहां मैंने सीफूड का आनंद उठाया।
शाम होते होते मैं वापस घर के लिए निकल पड़ा। मेरे पास ऐसी यादें थी जिसे जिंदगी भर मिटाई नहीं जा सकती। आज इस घटना को पूरे 5 वर्ष हो गए मैं आज कुवैत में काम करता हूं मेरे फ्लैट से समुंद्र केवल 5 मिनट के रास्ते पर है अक्सर में वहां जाता रहता हूँ । लेकिन पहली बार समुद्र देखने का एहसास ही कुछ और था जिसे भूले से भी भुलाया नहीं जा सकता।
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